देेश की बेटियों के लिए गौरव बनी भारतवंशी बेटी सिरिशा बांदला ने वर्जिन गैलेक्टिक की यूनिटी-22 से रविवार की रात 8 बजे अंतरिक्ष की सफल उड़ान भरी। अंतरिक्ष में चौथी बार किसी भारतीय के कदम पड़े हैं।
नई दिल्ली: देेश की बेटियों के लिए गौरव बनी भारतवंशी बेटी सिरिशा बांदला ने वर्जिन गैलेक्टिक की यूनिटी-22 से रविवार की रात 8 बजे अंतरिक्ष की सफल उड़ान भरी। अंतरिक्ष में चौथी बार किसी भारतीय के कदम पड़े हैं। सिरिशा बांदला चौथी भारतवंशी और तीसरी भारतीय मूल की महिला हैं, जिन्होंने अंतरिक्ष में उड़ान भरी है। इसके साथ ही सिरिशा भारत में जन्मी दूसरी और स्पेस में जाने वाली तीसरी भारतीय महिला बन गई हैं। उनसे पहले ये उपलब्धि कल्पना चावला ने हासिल की थी। चावला ने 2003 में अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA के कोलंबिया मिशन को अंजाम दिया। वहीं, विंग कमांडर राकेश शर्मा ने पहली बार भारतीय नागरिक के तौर पर स्पेस की यात्रा की।
अंतरिक्ष युग के एक नए दौर
ब्रिटिश अरबपति रिचर्ड ब्रैनसन ने रविवार को इतिहास रच दिया, जब वह एक निजी स्पेसक्राफ्ट के जरिए स्पेस की यात्रा करके धरती पर वापस लौटे। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, रिचर्ड ने स्पेस से लौटने के बाद कहा, ‘ये कोई रेस नहीं थी। हम इस बात से बेहद खुश हैं कि सब कुछ बहुत ही अच्छे ढंग से हुआ।’ ब्रिटिश अरबपति ने स्पेस यात्रा के दौरान ली गई एक तस्वीर को भी साझा किया। उन्होंने इसके साथ ही लिखा, ‘अंतरिक्ष युग के एक नए दौर में आपका स्वागत है।’
सम्मानित महसूस कर रही हूं- सिरिशा बांदला
वहीं, टेक ऑफ से पहले एयरोनॉटिकल इंजीनियर सिरिश बांदला ने ट्वीट किया, ‘एक अभूतपूर्व तरीके से यूनिटी 22 (Unity 22) के अद्भुत दल का सदस्य होने और एक ऐसी कंपनी का हिस्सा बनकर सम्मानित महसूस कर रही हूं, जिसका मिशन सभी के लिए स्पेस को सुलभ बनाना है।’ आपको बता दें कि बांदला का जन्म आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में हुआ, लेकिन वह अमेरिका के ह्यूस्टन पलीं-बढ़ी हैं। एक एस्ट्रोनोट के रूप में उनका बैज नंबर 004 है और फ्लाइट में उनकी भूमिका अनुसंधान करने की थी।
सिरिशा बांदला चार साल की उम्र में अमेरिका चली गईं और 2011 में पर्ड्यू यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ एरोनॉटिक्स एंड एस्ट्रोनॉटिक्स से विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की। उन्होंने 2015 में जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय से मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की डिग्री पूरी की। बांदला यूएस नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के लिए एक एस्ट्रोनोट बनना चाहती थीं। लेकिन, आंखों की कमजोर रोशनी के कारण वह ऐसा नहीं कर सकीं।