अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट रिवर फ्रंट के निर्माण के दौरान जमकर धांधली की गई। सीबीआई जांच में निर्माण कार्य के दौरान हुई अनियमितिता अब उजागर हो रही है। जांच में सिंचाई विभाग का एक और कारनामा उजागर हुआ है, जिसमें विभाग ने चेहतों के लिए बिना टेंडर ही 60 करोड़ रुपये का काम दे दिया। यही नहीं ये 60 करोड़ रुपये अस्थायी बंधा बनाने के लिए पास किया गया था।
लखनऊ। अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट रिवर फ्रंट के निर्माण के दौरान जमकर धांधली की गई। सीबीआई जांच में निर्माण कार्य के दौरान हुई अनियमितिता अब उजागर हो रही है। जांच में सिंचाई विभाग का एक और कारनामा उजागर हुआ है, जिसमें विभाग ने चेहतों के लिए बिना टेंडर ही 60 करोड़ रुपये का काम दे दिया। यही नहीं ये 60 करोड़ रुपये अस्थायी बंधा बनाने के लिए पास किया गया था। सीबीआई की जांच में सिंचाई विभाग द्वारा किए जा रहे सरकारी धन के बंदरबांट का मामला उजागर हो रहा है। जांच में सामने आया कि रिवर फ्रंट पर काम कराने के लिए गोमती का प्रवाह रोका गया।
इसके लिए सिंचाई विभाग ने जो कच्चा बंधा बनाया, उसका टेंडर ही नहीं किया गया। कुड़ियाघाट पर नए पक्के पुल के पास बंधा बनाने में 60 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जो चेहती फर्म को बिना टेंडर के ही काम दे दिया गया। सीबीआई ने रिवर फ्रंट घोटाले की जांच में इस बंधे को साक्ष्य माना है। ऐसे में इसे हटाने की अनुमति भी नहीं मिल पा रही है। जांच में सामने आया कि रिवर फ्रंट पर काम शुरू होने के बाद वर्ष 2015 में ठेकेदार फर्म तराई कंस्ट्रक्शंस से बंधा बनवाया। इसके लिए टेंडर भी नहीं किया गया। जांच शुरू होने पर टेंडर और उनके भुगतान की जांच में यह कारनामा सामने आया।
इसके बाद से सीबीआई ने इसे सुरक्षित बनाए रखने का आदेश कर दिया। गौरतलब है कि, बिना जरूरत के चार साल से यह अस्थायी बंधा बना हुआ है। आगे यह कब तक बना रहेगा? इसका जवाब भी नहीं मिल पा रहा है। पर्यावरणविद् डॉ. वैंकटेश दत्ता का कहना है कि अगर कोई साक्ष्य है तो इसकी वीडियोग्राफी या फोटोग्राफी कराकर रिकॉर्ड सुरक्षित किया जा सकता है। इसके लिए बंधे को ही बनाए रख प्रवाह प्रभावित करने का कोई औचित्य नहीं दिखता। इसे हटाने की अनुमति सीबीआई को दे देनी चाहिए।
शौचालय के टेंडरों में भी धांधली
रिवर फ्रांट के शौचालयों के टेंडरों में भी धांधली की गयी है। यहां नियम ताक पर रख टॉयलेट बनाने के ठेके दे दिए गए। इस वजह से सीबीआई ने इन्हें भी अपनी जांच के दायरे में ले लिया है। ऐसे में सिंचाई विभाग को यह निर्माण ठेकेदारों से हैंडओवर भी नहीं हो पाए। इसका परिणाम यह है कि चार साल बाद भी इनका उपयोग नहीं हो पाया है।