प्रकृति के नियमों से जब जब छेड़छाड़ होती है तब उसके परिणाम भयानक ही होते है। इसको लेकर संयुक्त राष्ट्र ने भी रिपोर्ट जारी की, जिसके मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग की वजह से अंटार्कटिका के तापमान में तेजी से इजाफा हो रहा है।
नई दिल्ली: प्रकृति के नियमों से जब जब छेड़छाड़ होती है तब उसके परिणाम भयानक ही होते है। इसको लेकर संयुक्त राष्ट्र ने भी रिपोर्ट जारी की, जिसके मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग की वजह से अंटार्कटिका के तापमान में तेजी से इजाफा हो रहा है। अगर सभी ने वक्त रहते कड़ा कदम नहीं उठाया, तो कई जगहों पर भीषण तबाही मच सकती है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अंटार्कटिका में इस साल अधिकतम 18.3 डिग्री सेल्सियस (64.9 डिग्री फारेनहाइट) तापमान रिकॉर्ड किया गया। संयुक्त राष्ट्र विश्व मौसम विज्ञान संगठन (यूएन डब्लूएमओ) ने इसकी पुष्टि की है। इसके अलावा पिछले 50 सालों में वहां के तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। यूएन डब्लूएमओ के महासचिव पेटेरी तालास के मुताबिक अंटार्कटिका के लिए ये अधिकतम तापमान था, जो एस्पेरांजा अनुसंधान केंद्र ने रिकॉर्ड किया। इससे पहले 2015 में तापमान 17.5 डिग्री सेल्सियस तक गया था।
दरअसल अंटार्कटिका पृथ्वी का दक्षिणतम महाद्वीप है, जो पूरी तरह से बर्फ से ढका है। इसके अलावा ये एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका के बाद पृथ्वी का पांचवां सबसे बड़ा महाद्वीप है, जो 140 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला है। अगर वहां का तापमान बढ़ता है, तो जाहिर सी बात है कि बर्फ तेजी से पिघलेगी, ऐसे में समुद्र का जलस्तर बढ़ जाएगा। जिससे कई देशों के तटीय इलाके डूब सकते हैं या फिर उससे बड़ी तबाही भी आ सकती है।