जो लाल व श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या तो बढ़ाती ही है, रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत करती है। शरीर के सुरक्षा तंत्र में इन रक्त कोशिकाओं की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है। खानपान का भी कोरोना संक्रमण के इस दौर में विशेष ख्याल रखें, ताकि आपका इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत बना रहे।
नई दिल्ली: आप सभी जानते हैं कि किसी भी तरह के वायरल संक्रमण से हमारा श्वसन तंत्र, खासकर एलवियोलाई सर्वाधिक प्रभावित होती हैं। ऐसे में श्वास-प्रश्वास की क्रिया को मजबूत करने के लिए नियमित रूप से सुबह-शाम प्राणायाम का अभ्यास जरूरी है। ऐसा कर हम अपनी सांसों के जरिये फेफड़ों में अधिक ऑक्सीजन पहुंचाते हैं।
जो लाल व श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या तो बढ़ाती ही है, रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत करती है। शरीर के सुरक्षा तंत्र में इन रक्त कोशिकाओं की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है। खानपान का भी कोरोना संक्रमण के इस दौर में विशेष ख्याल रखें, ताकि आपका इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत बना रहे।
नाइट्रिक ऑक्साइड संक्रमण के दौरान फेफड़ों के उच्च दबाव को नियंत्रित करने में बहुत उपयोगी है। वर्ष 2004 में सार्स महामारी SARS-CoV में नाइट्रिक ऑक्साइड का महामारी को नियंत्रित करने में योगदान उल्लेखनीय है। यह रोग से पीड़ित व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा को बढ़ा व गंभीर हालत में शरीर के लिये आवश्यक आईसीयू और वेंटिलेटर सपोर्ट के समय को कम कर देता है। यह रोग के दौरान श्वसन में होने वाली समस्या में सुधार कर फेफड़ो को आराम पहुंचाता है।
नाइट्रिक ऑक्साइड शरीर में वायरस के प्रसार को 82% तक कम कर देता है, जिसके फलस्वरुप कोरोना वायरस के प्रभाव और प्रसार गंभीर अवस्था में नहीं पहुंच पाता। नाइट्रिक ऑक्साइड बच्चों के फेफड़ो में उच्च दबाव जिसमें सांस लेने में समस्या के इलाज में भी कारगर है।
नाइट्रिक ऑक्साइड शरीर की कोशिकीय अवस्था में विभिन्न अभिक्रियोओं में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है। यह शरीर को विभिन्न जीवाणु विषाणु कवकों से होने वाले संक्रमण से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता के विकास में सहायक है।
वैश्विक महामारी के दौरान भ्रामरी प्राणायाम करने से किस प्रकार आप नाइट्रिक ऑक्साइड को अपनी संपूर्ण शरीर में रिफ्लेक्स करके आप इस महामारी से बच सकते हैं। भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास आपको खेचरी मुद्रा के साथ करना। क्योंकि जब हम खेचरी मुद्रा के साथ इस प्राणायाम को करते हैं। तो जो ये हमारी जीभ है यह हमारे तलवे में लगती है। आप जीभ को खेचरी मुद्रा के साथ तलवे के पिछले हिस्से में ज्यादा से ज्यादा लगाने का प्रयास करें।
क्योंकि जब हम भंवरों की तरह आवाज उत्पन्न करते हैं। तो हमे एक वाइब्रेशन महसूस होता है। उस वाइब्रेशन से एक रिफ्लेक्शन निकलती है जो हमारे पूरे शरीर में रिफ्लेक्स होती है और हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर हमें वायरस से लड़ने की शक्ति प्रदान करती है। साथ ही साथ हमारे आसपास में 5 से 10 मीटर में कोई भी वायरस प्रवेश नहीं कर सकता।
श्वसन के दौरान गुंजन नाइट्रिक आक्साइड के उत्पादन को शरीर में बढ़ा देता है। श्वसन गुंजन श्वास नली के संक्रमण को ठीक और उसे स्वच्छ करने में उपयोगी है। सामान्य स्वांस और गुंजन के साथ स्वांश लेने में नाइट्रिक ऑक्साइड शरीर में 15 गुना तक ज्यादा पहुंचता है। नाइट्रिक ऑक्साइड की कमी से अवसाद में होने वाली कोशिकीय स्तर पर अम्लता-पीएच मान बढ़ जाने से खून का थक्का जमने की समस्या 168% तक बढ़ जाती है।
भ्रामरी प्राणायाम में श्वसन गुंजन किया जाता है। भ्रामरी प्राणायाम नाइट्रोजन ऑक्साइड को बढ़ाते हुए लंबी श्वांस के कारण शरीर से अधिकतम कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन शरीर के पीएच मान को नियंत्रित करता है और खून का थक्का जमने की समस्या की रोकथाम भी करता है।