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वन नेशन-वन इलेक्शन बिल सदन से पास कराना बड़ा मुश्किल, मोदी सरकार दो तिहाई बहुमत से है काफ़ी पीछे

केंद्र की मोदी सरकार ने लोकसभा में मंगलवार को वन नेशन-वन इलेक्शन बिल पेश कर दिया गया। बिल पर वोटिंग के दौरान भाजपा के कई सांसद सदन में मौजूद नहीं थे। अब पार्टी ने ऐसे सांसदों को नोटिस जारी करने का फैसला किया है।

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार ने लोकसभा में मंगलवार को वन नेशन-वन इलेक्शन बिल पेश कर दिया गया। बिल पर वोटिंग के दौरान भाजपा के कई सांसद सदन में मौजूद नहीं थे। अब पार्टी ने ऐसे सांसदों को नोटिस जारी करने का फैसला किया है।

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केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने 129वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया। इस बिल का कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने विरोध किया। विपक्षी दलों ने इस विधेयक की खामियां गिनाई और इसे संविधान के संघीय ढांचे के खिलाफ बताया। इसके बाद कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस विधेयक पर व्यापाक चर्चा के लिए संयुक्त संसदीय समिति यानी JPC के पास भेजने का प्रस्ताव दिया। अब जेपीसी कमेटी में इस विधेयक पर विस्तृत चर्चा होगी।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर मोदी सरकार को वन नेशन वन इलेक्शन विधेयक को ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी के पास भेजना पड़ा। आइए इसके पीछे की कहानी को समझने की कोशिश करते हैं।

आखिर मोदी सरकार को JPC के पास क्यों भेजा? 

एक देश एक चुनाव एक संविधान संशोधन विधेयक है इसलिए सरकार को इसे दो तिहाई बहुमत से पास कराना जरूरी है,लेकिन न तो लोकसभा और न ही राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत है। ऐसे में संशोधन वाले विधेयकों को पास कराने के लिए सरकार को अड़चन का सामना करना पड़ता है। एक देश एक चुनाव संविधान संशोधन विधेयक को पास कराने के लिए दो तिहाई बहुमत चाहिए। लोकसभा में एनडीए सरकार के पास 292 सीटें हैं, जबकि दो तिहाई से बिल पास कराने के लिए उसे 362 सीटों की जरूरत हैं। वहीं, राज्यसभा में एनडीए के पास 112 सीटें हैं। दो तिहाई बहुमत के लिए 164 सीटें और 6 मनोनित सांसदों का भी समर्थन चाहिए। ऐसे में सरकार के लिए इस बिल को सदन से पास कराना बड़ा मुश्किल है।

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इसके साथ इस तरह संशोधन के लिए संविधान के अनुच्छेद 368(2) के तहत कम से कम 50 फीसदी राज्यों का समर्थन जरूरी है। गैर बीजेपी शासित राज्य इस विधेयक का विरोध करेंगे। ऐसे में सरकार को यहां भी अड़चन का सामना करना पड़ सकता है।

JPC का क्यों किया जाता है गठन?

संयुक्त संसदीय समिति (JPC) एक अस्थायी या तदर्थ समिति है जिसका गठन भारतीय संसद द्वारा किसी विशेष मुद्दे या रिपोर्ट की जांच के लिए किया जाता है। यह समिति आमतौर पर एक विशेष मामले, विवाद या रिपोर्ट की निष्पक्ष जांच करने का कार्य करती है ताकि सही तथ्यों और स्थितियों का पता चल सके। संसद में काम की अत्यधिक अधिकता और समय की कमी के कारण जेपीसी का गठन किया जाता है।

भारतीय संसद में रोजाना कई विधेयक, रिपोर्टें, और मामलों पर विचार-विमर्श होता है। इन सभी मामलों की गहन जांच और परीक्षण करना समय की दृष्टि से कठिन होता है। ऐसे में, इन मुद्दों की जांच के लिए विभिन्न समितियाँ बनाई जाती हैं, जिनमें जेपीसी प्रमुख भूमिका निभाती है। जेपीसी का उद्देश्य किसी विशेष मुद्दे की गंभीरता से जांच करना और निष्पक्ष रूप से निर्णय तक पहुँचने में मदद करना होता है।

सदन में दोबारा बिल पेश करेगी सरकार

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जेपीसी कमेटी के विचार विमर्श के बाद मोदी सरकार फिर से इस विधेयक को संसद में पेश करेगी।कमेटी द्वारा इस विधेयक के संबंध में जो रिपोर्ट दी जाएगी और इसमें जो भी सुधार की सिफारिश की जाएगी उसी के अनुसार इसमें बदलाव करके सरकार इसे फिर से सदन में पेश करेगी।

मोदी सरकार को दूसरी बार JPC के पास भेजना पड़ा विधेयक

2014 में मोदी सरकार बनने के बाद ऐसा दूसरी बार जब सरकार को किसी विधेयक पर विस्तृत चर्चा करने के लिए जेपीसी के पास भेजना पड़ा है। सरकार ने पहले ‘वक्फ संशोधन विधेयक’ को ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी के पास भेजा था। अब ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक को सरकार ने जेपीसी के पास भेजा है। इसके जरिए मोदी सरकार यह मैसेज भी देने की कोशिश कर रही है कि उनकी सरकार सर्वसम्मति और विचार-विमर्श के बाद विधेयक को ला रही है।

 

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