दोषियों को बचाने की हर मनगढ़ंत कहानियां लिखीं गईं लेकिन हकीकत जगजाहिर हो चुका था। खाकी के जुर्म और प्रताड़ना का शिकार मनीष हो चुका था, उसकी जान जा चुकी थी लेकिन अधिकारी फिर भी खामोश थे। कार्रवाई करने के बजाए वो इस पर पर्दा डाल रहे थे। ये पहली घटना नहीं है जब खाकी के जुर्म पर पर्दा डालने और दोषियों को बचाने की कोशिशें की गई हों।
लखनऊ। फिर एक मां का बेटा छीन गया…एक पत्नी का सिंदूर मिट गया…छोटी सी उम्र में ही बच्चे के सिर से पिता का साया उठ गया…। पत्नी रहम की भीख मांगती रही लेकिन पुलिस को जरा भी तरस नहीं आया। सुहाग छीनने के बाद भी उसे एफआईआर न करने की नसीहतें दी गईं। कोर्ट कचहरी से दूर रहने की सलाह दी गई।
दोषियों को बचाने की हर मनगढ़ंत कहानियां लिखीं गईं लेकिन हकीकत जगजाहिर हो चुका था। खाकी के जुर्म और प्रताड़ना का शिकार मनीष हो चुका था, उसकी जान जा चुकी थी लेकिन अधिकारी फिर भी खामोश थे। कार्रवाई करने के बजाए वो इस पर पर्दा डाल रहे थे। ये पहली घटना नहीं है जब खाकी के जुर्म पर पर्दा डालने और दोषियों को बचाने की कोशिशें की गई हों।
इससे पहले राजधानी लखनऊ में भी विवेक तिवारी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था, जब वो पुलिस की गोली का शिकार बन गए थे। इस घटना के बाद भी पुलिस के अधिकारियों ने तमाम दलीलों के जरिए आरोपियों को बचाने की कोशिशें की थीं। हालांकि बाद में उन पर कार्रवाई हुई लेकिन आखिर कब तक खाकी की ये तानाशाही और जुर्म का शिकार लोग होते रहेंगे।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में चोट के निशान
बता दें कि, कानपुर के व्यापारी मनीष गुप्ता गोरखपुर गए थे। होटल में चेकिंग के नाम पर घुसे पुलिसकर्मियों ने उनके साथ मारपीट की। विरोध करने पर उनकी बेरहमी से पिटाई कर दी। पुलिस की बेहरमी से पिटाई के कारण उनकी जान चली गयी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनके सिर, चेहरे और शरीर के अन्य हिस्सों में गंभीर चोट के निशान हैं। सिर के अगले हिस्से पर तेज प्रहार किया गया, जिससे उनके नाक के पास से खून बह रहा था।
विवेक तिवारी हत्याकांड
लखनऊ के गोमतीनगर में एपल कंपनी के एरिया के सेल्स मैनेजर विवेक तिवारी की गोली लगने से मौत हो गयी थी। ये गोली पुलिस कर्मियों के द्वारा चलाई गयी थी। इस मामले में भी पुलिस ने कई मनगढ़ंत कहानियां बनाई। हालांकि, पुलिस की हर मनगढ़ंत कहानियों से एक के बाद एक पर्दा उठाता गया और खाकी का जुर्म उजागर हुआ।