उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव एक बार भाजपा के नाम रहा। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने खूब समीकरण बनाए लेकिन BJP को मात नहीं दे पाए। यूपी के इस चुनाव में ख़ास बात यह भी रही कि इस बार 34 मुस्लिम उम्मीदवार पहुंचे हैं। इनमें सबसे अधिक 21 मुस्लिम विधायक पश्चिम से चुनकर आये हैं जबकि छह मध्य यूपी से, सात पूर्वांचल से हैं।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव एक बार भाजपा के नाम रहा। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने खूब समीकरण बनाए लेकिन BJP को मात नहीं दे पाए। यूपी के इस चुनाव में ख़ास बात यह भी रही कि इस बार 34 मुस्लिम उम्मीदवार पहुंचे हैं। इनमें सबसे अधिक 21 मुस्लिम विधायक पश्चिम से चुनकर आये हैं जबकि छह मध्य यूपी से, सात पूर्वांचल से हैं।
चुनाव के दौरान राजनीतिक समीक्षक पश्चिम में भाजपा को कम आंक रहे थे लेकिन भाजपा ने अपने कमजोर पक्ष को ही मज़बूत में तब्दील कर डाला। हालाँकि पश्चिम से ही 32 मुस्लिम विधायक सपा के हैं साथ ही दो राष्ट्रीय लोकदल के हैं। रालोद के दो मुस्लिम विधायक सिवालखास से गुलाम मोहम्मद और थाना भवन से अशरफ अली हैं। इन मुस्लिम विधायकों में सबसे बुजुर्ग और पुराने चेहरे निजामाबाद से आलमबदी हैं जबकि सबसे नया चेहरा मऊ से अब्बास अंसारी हैं।
यूपी चुनाव के इतिहास की बात करें तो साल 2012 का चुनाव ऐसा रहा है जब सबसे अधिक मुस्लिम विधायक सदन पहुँचे हो। यह वही वक्त था जब अखिलेश यादव पहली दफ़ा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर क़ाबिज़ हुए थे। इस चुनाव ने 68 मुस्लिम एमएलए बने थे। बाद में इनकी संख्या 69 हो गयी थी। इनमें से करीब 45 विधायक सपा के थे तब राज्य की 18.5 प्रतिशत मुस्लिम आबादी को विधान सभा में 17.1 प्रतिशत प्रतिनिधित्व मिला था। अब तक सबसे कम 1991 में महज 17 मुस्लिम विधायक ही जीतकर सदन पहुंचे थे।
बताते चलें कि इस बार बसपा ने भी 88 मुस्लिम नेताओं को टिकट दिया था। जबकि सपा ने 64 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। सांसद असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी आल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन (एआईएमआईएम) ने 60 से अधिक सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। इसी तरह पीस पार्टी, राष्ट्रीय ओलमा काउंसिल ने भी मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे मगर इन सभी के हाथ निराशा लगी।