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‘वन स्टेट वन इलेक्शन’ का सपना टूटा, राजस्थान हाईकोर्ट ने लगाया ब्रेक

राजस्थान में होने वाले पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव अब वन स्टेट वन इलेक्शन (One State-One Election) के आधार पर नहीं हो पाएंगे। हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब राज्य निर्वाचन आयोग ने यह साफ कर दिया है कि एक साथ चुनाव कराना न तो संभव है और न ही संवैधानिक है।

By संतोष सिंह 
Updated Date

जयपुर। राजस्थान में होने वाले पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव अब वन स्टेट वन इलेक्शन (One State-One Election) के आधार पर नहीं हो पाएंगे। हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब राज्य निर्वाचन आयोग ने यह साफ कर दिया है कि एक साथ चुनाव कराना न तो संभव है और न ही संवैधानिक है। राज्य निर्वाचन आयोग (Election Commission) ने साफ कर दिया है कि प्रदेश के दो-तिहाई क्षेत्रों में स्थानीय निकाय और पंचायतों का कार्यकाल पूरा हो चुका है। अब इन जगहों पर चुनाव होने बाकी हैं। अभी सरकार की ओबीसी आरक्षण (OBC Reservation) और परिसीमन की प्रक्रिया चल रही है। हालांकि इसके बावजूद पांच में चुनाव कराए जाने की समय सीमा को नहीं तोड़ा जा सकता है। ऐसे में चुनाव आयोग ने साफ कर दिया है कि वन स्टेट वन इलेक्शन बिना संविधान में संशोधन के संभव ही नहीं है।

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सरकार की ओर से बार-बार इस फॉर्मूले को लागू करने की बात कही जा रही थी, लेकिन हाईकोर्ट के सख्त रुख और निर्वाचन आयोग के बयान ने इस योजना पर ब्रेक लगा दिया है। अब सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार का यह दावा केवल समय टालने की कवायद था, और क्या विपक्ष को सरकार को घेरने का एक नया हथियार मिल गया है?

हाईकोर्ट का आया फरमान

राजस्थान में 6,759 ग्राम पंचायतों और 49 नगर निकायों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है और इनके चुनाव अब निर्धारित समय पर कराए जाने हैं। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि संविधान के प्रावधानों के तहत पंचायत और स्थानीय निकायों के चुनाव पांच साल की अवधि के भीतर अनिवार्य रूप से होने चाहिए। राज्य निर्वाचन आयोग के आयुक्त मधुकर गुप्ता (State Election Commission Commissioner Madhukar Gupta) ने भी इस बात को दोहराया कि बिना संवैधानिक संशोधन के ‘वन स्टेट-वन इलेक्शन’ (One State-One Election) लागू करना असंभव है।

राज्य चुनाव अधिकारी मधुकर गुप्ता (State Election Officer Madhukar Gupta) ने कहा कि ‘कानूनी प्रावधानों में साफ लिखा है कि 5 साल के भीतर स्थानीय निकायों और पंचायत के चुनाव हो जाने चाहिए। माननीय उच्च न्यायालय ने भी प्रावधानों के आधार पर ही अपना फैसला दिया है। हमने सुप्रीम कोर्ट के साथ विभिन्न राज्यों के हाईकोर्ट के फैसले से भी राज्य सरकार को अवगत करवा दिया है और बताया है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी कह चुके हैं कि निर्धारित समय पर चुनाव होने चाहिए। हम जल्दी ही तारीखों का ऐलान भी कर देंगे। जहां परिसीमन हो चुका है, वहां उसी आधार पर चुनाव करवाएंगे, जहां नहीं हुआ है, वहां पुराने आधार पर चुनाव होंगे।’

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आयोग ने यह भी कहा कि अगले 2-3 दिनों में चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी जाएगी। जहां परिसीमन का काम पूरा हो चुका है, वहां नए परिसीमन के आधार पर और जहां नहीं हुआ है, वहां पुराने परिसीमन के आधार पर चुनाव होंगे।

सरकार ने उठाए हैं ठोस कदम

भजनलाल सरकार (Bhajanlal Government) ने ‘वन स्टेट-वन इलेक्शन’ (One State-One Election)  को लागू करने के लिए कई कदम उठाए थे। सरकार ने पंचायत और नगर निकायों के पुनर्गठन और परिसीमन की प्रक्रिया शुरू की थी, जिसके चलते 6,759 ग्राम पंचायतों के चुनाव टाल दिए गए थे। इसके अलावा, सरकार ने मौजूदा सरपंचों को प्रशासक नियुक्त कर प्रशासकीय समितियों का गठन किया था। हालांकि, हाईकोर्ट ने इस कदम को भी संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ माना और सरकार को फटकार लगाई।

वहीं, कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि संविधान में साफ प्रावधान है कि आपात स्थिति को छोड़कर पंचायत और निकाय चुनावों को टाला नहीं जा सकता है। पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता सत्येंद्र राघव (Former Additional Advocate General Satyendra Raghav) के अनुसार, सरकार छह महीने से अधिक समय तक प्रशासक नहीं लगा सकती है और अगर इस मुद्दे को कोर्ट में चुनौती दी गई, तो सरकार के तर्क कमजोर पड़ सकते हैं।

विपक्ष ने भी बोला हमला

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विपक्ष, खासकर कांग्रेस, ने इस मुद्दे को लेकर सरकार पर तीखा हमला बोला है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा (State Congress President Govind Singh Dotasara) और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली (Leader of Opposition Tikaram Julie) ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि ‘निर्धारित समय पर चुनाव नहीं करना संविधान का उल्लंघन है। दो दिन पहले हाईकोर्ट में भी हाईकोर्ट ने फैसला दिया है। जो सरपंचों को प्रशासक बनाकर सरकार काम करवा रही थी, अभी हमारी रिट बाकी है जिसमें हमने पूछा है कि चुनाव क्यों नहीं करवाया जा रहे हैं।

हाईकोर्ट ने चुनाव नहीं करने की जांच का भी फैसला दिया है। यह सरकार चुनाव करना ही नहीं चाहती।’ वहीं, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने कहा कि ‘सरकार की मंशा ही नहीं है चुनाव कराने की। यह जो स्थिति चल रही है, वह सवाल उठता है कि देश को किस दिशा में यह लोग ले जा रहे हैं। इन्हें कोर्ट की फटकार पड़ रही है। पूरे प्रदेश में गलत मैसेज जा रहा है, लेकिन फिर भी सरकार समझ ही नहीं रही है कि 5 साल में चुनाव करवाया जाना अनिवार्य है।’

कांग्रेस का यह भी आरोप है कि ‘वन स्टेट-वन इलेक्शन’ (One State-One Election)  के लिए 400 करोड़ रुपये के अतिरिक्त संसाधनों की जरूरत होगी, जो मौजूदा स्थिति में उपलब्ध कराना मुश्किल है। विपक्ष का कहना है कि सरकार इस बहाने से चुनाव टालना चाहती है, जिससे उसकी सियासी रणनीति को बल मिले।

ओबीसी आरक्षण और परिसीमन का भी उठा मुद्दा

सरकार ने हाईकोर्ट में दलील दी थी कि ओबीसी आरक्षण और परिसीमन की प्रक्रिया के चलते चुनाव टाले गए हैं। हालांकि, हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि ये प्रक्रियाएं चुनाव कराने की संवैधानिक बाध्यता को नहीं रोक सकतीं। छत्तीसगढ़ में भी पंचायत चुनावों में ओबीसी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट ने सरकार और निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा है, जिससे इस मुद्दे की संवेदनशीलता और बढ़ गई है।

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