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प्रभु श्रीराम का जीवन चरित्र हमें त्याग की भावना सिखाता है, श्रेय लेने का नहीं

राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला विराजमान हो गए हैं। इसके साथ ही 500 सालों का इंतजार खत्म हो गया है। इसके बाद पूरे देश में हर्ष और उल्लास का माहौल है। हर कोई राममय हो गया है। इसके बाद देश में सत्ताधारी दल श्रेय लेने में जुट गया है। जबकि प्रभुश्री राम का जीवन चरित्र हमें त्याग की भावना सिखाता है।

By संतोष सिंह 
Updated Date

लखनऊ। राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला विराजमान हो गए हैं। इसके साथ ही 500 सालों का इंतजार खत्म हो गया है। इसके बाद पूरे देश में हर्ष और उल्लास का माहौल है। हर कोई राममय हो गया है। इसके बाद देश में सत्ताधारी दल श्रेय लेने में जुट गया है। जबकि प्रभुश्री राम का जीवन चरित्र हमें त्याग की भावना सिखाता है।

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हम सबको भी अपने जीवन में उनके आदर्शों और मूल्यों का पालन करना होगा। तभी रामराज्य की परिकल्पना साकार होगी। इसीलिए भगवान श्रीराम को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम‘ कहा जाता है। वे सत्यनिष्ठा के प्रतीक, सदाचरण और आदर्श पुरुष के साकार रूप मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। हमें भगवान राम के जीवन से प्रेरणा भी लेनी चाहिए। कर्तव्यपथ पर प्रतिबद्ध भगवान श्रीराम के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता है कि वे सबके थे और सबको साथ लेकर चलते थे।

उन्होंने सबका विश्वास अर्जित करने के लिए अपने सुखों का भी त्याग कर दिया था। वे जितने वीर थे, मेधावी थे उतने ही सहनशील भी। उन्होंने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया और विपरीत परिस्थिति कभी उन्हें विचलित नहीं कर सकती थी। न्याय और राजधर्म उनके लिए सर्वोपरि था। ऐसे में अब रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद उनके आदर्शों को ही जीवना में उतरना उनकी सच्ची पूजा और भक्ति होगी।

नारायण की लीला को जब देवतागण नहीं समझ पाए, तो मनुष्य क्या समझेगा? दशरथ नंदन प्रभु श्रीराम पिता द्वारा माता कैकेयी को दिए गए बचन को पूरा करने के लिए प्रभु श्री राम ने राजमहल त्याग कर वनवास धारण किया। यह देखकर लक्ष्मण ने भी उनके साथ सभी सुख त्याग दिए। श्री राम परिवार से त्याग की भावना सीखने को मिलती है। उनके परिवार में एक दूसरे के प्रति त्याग करना आज हम सभी लोगों को नई सीख देता है। भरत ने अयोध्या का त्याग कर 14 वर्ष तक वनवासियों की तरह नंदीग्राम में जीवन बिताया। भरतजी नंदीग्राम में रहते हैं, तो शत्रुघ्न जी उनके आदेश से राज्य संचालन करते हैं। राम की पत्नी चाहती तो अपने पिता जनक के यहां चली जाती लेकिन, नहीं उन्होंने भी सभी सुखों का त्याग कर दिया। यह देखकर शत्रुघ्न ने अपनी पत्नी श्रुतिकीर्ति से दूरी बना ली। भारत की पत्नी मांडवी ने भी भरत के साथ तपस्वियों जैसा जीवन बिताया। बड़े भाई पर संकट आया तो सभी भाईयों ने भी संकट को वरण कर लिया।

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