उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई है। सूबे में जैसे, जैसे चुनाव नजदीक आ रहे है राजनीतिक दलों में भगदड़ का आलम बनने लगा है।
UP Election 2022 : उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई है। सूबे में जैसे, जैसे चुनाव नजदीक आ रहे है राजनीतिक दलों में भगदड़ का आलम बनने लगा है। सत्ताधारी दल भाजपा के एक कद्दावर नेता ने ऐलान किया है कि वह 14 जनवरी को समाजवादी पार्टी में शामिल हो जाएंगे। सत्ताधारी दल भी अपने आप को मजबूत दिखाने के लिए दूसरे दलों के विधायकों को अपने दल में शामिल करने में जुट गई है। धीरे, धीरे यूपी का चुनाव रोचक मोड़ पर आ खड़ा है। विधानसभा चुनाव 2022 के लिए अभी किसी दल ने अपने प्रत्याशियों की औपचारिक घोषणा नहीं की है। बहुजन समाज पार्टी के प्रवक्ताओं द्वारा दावा किया जा रहा है कि उनकी पार्टी ने 150 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है।
पहले चरण के लिए भाजपा दिल्ली में उम्मीदवारों की सूची पर पिछले दो दिनों से मंथन कर रही है। सूबे में भाजपा से एक ओबीसी नेता के सपा में जाने के ऐलान के बाद चुनाव के समीकरण बदलने लगे है। पिछड़े वोटों की गोलबंदी सपा के पक्ष में होते दिखने से ये नया समीकरण सत्ताधारी दल के लिए मुख्य चुनौती बन गई है।
सूबे की सियासत में पिछड़े और दलित वोटों का समीकरण बैठाने के लिए भाजपा लगातार प्रयासरत रही है। पिछले विधानसभा चुनाव 2017 में भाजपा को इस समीकरण पर 300 से अधिक सीटें मिली थी। भाजपा इस लाईन पर अपनी चुनावी रणनीति बना काम भी कर रही थी कि अचानक इस रणनीति को धक्का लगा। कद्दावर पिछड़े वर्ग के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने भाजपा को बाय बाय कह भाजपा की रणनीति को पलीता लगा दिया।
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 की जमीन पर भाजपा और सपा के बीच सीधी टक्कर होती दिख रही है। सूबे में अगड़ों बनाम पिछड़ों की लड़ाई का नया समीकरण उभरने लगा है। अब जब चुनाव के लिए बिल्कुल वक्त नहीं बचा है तो ऐसे में नये समीकरण को साधने के लिए भाजपा के हाथ खाली दिख रहे है। पिछड़ों की गोलबंदी में समाजवादी पार्टी भाजपा से आगे निकल गई है। इस बार के चुनाव में समाजवादी पार्टी के पास राजभर,मौर्या, पटेल,विंद और अन्य पिछड़ी जातियों के नेताओं की पूरी फौज खड़ी हैै। दरअसल यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में इन जातियों के सभी बड़े नेता भाजपा के पाले में खड़े थे। लेकिन पांच साल में की यात्रा में इन जातियों के नेता भाजपा से बिछड़ गए।
प्रदेश की राजनीति में पल पल में बदल रहे समीकरण में कमल का साथ छोड़कर साईकिल के सवार तेजी बढ़ते जा रहें है। भाजपा के सामने मौजूदा समीकरण में बदलाव लाने की बहुत बड़ी चुनौती है। आने वाले 10 मार्च 2022 को ही पता चल जाएगा कि समीकरण साधने में दक्ष रही भाजपा चक्रव्यूह रचने में कामयाब रही कि चक्रव्यूह में फस गई।