बिहार की सियासत इन दिनों बेहद ही गर्म हो गई है। वहां पर सियासी सरगर्मी पूर्व सासंद और बाहुबली नेता आनंद मोहन की रिहाई को लेकर बढ़ी है। सवाल यह है कि आखिर आनंद मोहन की रिहाई पर संग्राम क्यों छिड़ा है? बिहार में आनंद मोहन कितने ताकतवर हैं? बिहार सरकार ने अचानक कानून में बदलाव क्यों किया?
Bihar News: बिहार की सियासत इन दिनों बेहद ही गर्म हो गई है। वहां पर सियासी सरगर्मी पूर्व सासंद और बाहुबली नेता आनंद मोहन की रिहाई को लेकर बढ़ी है। आनंद मोहन की रिहाई को लेकर विरोध भी शुरू हो गया है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसका विरोध किया था। इसके बाद आईएएस एसोसिएशन की तरफ से भी पत्र लिखा गया है। बसपा ने इसे नीतीश सरकार को दलित विरोधी बताया है।
हालांकि, भाजपा आनंद मोहन की रिहाई को लेकर दो मत में बंटी दिख रही है। भाजपा के कुछ नेता इसका विरोध कर रहे हैं तो कुछ इसका समर्थन भी कर रहे हैं। सवाल यह है कि आखिर आनंद मोहन की रिहाई पर संग्राम क्यों छिड़ा है? बिहार में आनंद मोहन कितने ताकतवर हैं? बिहार सरकार ने अचानक कानून में बदलाव क्यों किया? कहा ये भी जा रहा है कि नीतीश कुमार आगामी लोकसभा चुनाव 2024 को देखते हुए ये सब कर रहे हैं? आइए जानते हैं आनंद मोहन के बारें में…
कौन है बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह?
आनंद मोहन का जन्म बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव में हुआ था। उनके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे। आनंद मोहन की राजनीति में एंट्री 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के दौरान हुई थी। आनंद मोहन राजनीति में महज 17 साल की उम्र में आ गये थे।
लालू यादव के विरोधी माने जाते थे आनंद मोहन
बिहार की राजनीति में आनंद मोहन सिंह बाहुबली नेता के तौर पर जाने जाते हैं। बिहार की राजनीति जब से शुरू हुई, तबसे जाति के नाम पर चुनाव हुए और लड़े गए। एक दौर बिहार की राजनीति में 90 के दशक में आया जब ऐसा सामाजिक ताना-बाना बुना गया था कि जात की लड़ाई खुलकर सामने आ गई थी और अपनी-अपनी जातियों के लिए राजनेता भी खुलकर बोलते दिखते थे। उस वक्त लालू यादव का दौर चल रहा था। उस दौर में आनंद मोहन लालू के घोर विरोधी के रूप में उभरे थे। 90 के दशक में आनंद मोहन की तूती बोलती थी। उनपर हत्या, लूट, अपहरण, फिरौती, दबंगई समेत दर्जनों मामले दर्ज हैं।
आईएएस अधिकारी की हत्या में ठहराए गए थे दोषी
बता दें कि, आनंद मोहन सिंह आईएएस अधिकारी की हत्या में दोषी ठहराए गए थे। पिछले 15 वर्षों से बिहार की सहरसा जेल में सजा काट रहे। वह उन 27 कैदियों में शामिल हैं, जिन्हें जेल नियमों में संशोधन के बाद बिहार की जेल से रिहा किया गया जाएगा। नियमों में बदलाव और आनंद मोहन सिंह की रिहाई से राजनीतिक गलियारे में बवाल मचा हुआ है।
सवर्ण वोटर पर नजर
बता दें कि, लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सियासी सरगर्मी बढ़ती ज रही है। बिहार के सीएम नीतीश कुमार विपक्ष के नेताओं से मुलाकात भी कर रहे हैं। कहा जा रहा है किस इसको देखते हुए जेडीयू और आरजेडी की नजर अब पिछड़ों के साथ सवर्ण जातियों पर भी हैं। आनंद मोहन सिंह के जरिए दोनों पार्टियां अपर कास्ट वोट बैंक और राजपूत वोट बैंक तक पहुंचना चाहती हैं।