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Black Rice Farming : ये चावल नहीं काला सोना है, खेती करके आप भी साल में कमा सकते हैं लाखों रुपये

खेती किसानी में अपार संभावनाएं है। कुछ फसलों का ट्रेंड अचानक बढ़ने लगता है और कुछ फसलों की मांग घटने लगती है। दरअसल स्वास्थ्य को लेकर मूल्यवान फसलें अपनी जगह किसानों के बीच में बना लेती है।

By अनूप कुमार 
Updated Date

Black Rice Farming : खेती किसानी में अपार संभावनाएं है। कुछ फसलों का ट्रेंड अचानक बढ़ने लगता है और कुछ फसलों की मांग घटने लगती है। दरअसल स्वास्थ्य को लेकर मूल्यवान फसलें अपनी जगह किसानों के बीच में बना लेती है। जैसे जैसे तकनीक का प्रसार तेजी से हो रहा है वैसे वैसे दुर्लभ समझी जाने वाली फसलों का उत्पादन सोना बरसा रही है। इन दिनों काले चावल ने जोर पकड़ा है। सामान्य चावलों की बाजार में कीमत से कई गुना मुनाफा देने वाली फसल है काला चावल। स्वास्थ्य विशेष्ज्ञों के अनुसार यह शुगर, ब्लड प्रेशर जैसी लाईस्टाइल बीमारियों में कारगर है। काले धान की मांग को देखते हुए अब किसानों का रुख इस ओर बढ़ रहा है।

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 खेती में लागत कम आती है
जहां सामान्य चावल की कीमत 40 रुपये से 200 रुपये तक होती है, वहीँ काले चावल 500 रुपये प्रति किलो मिलते हैं।आरंभ में इन चावलों की खेती चीन में की जाती थी। लेकिन फिर पूर्वोत्तर के राज्य असम, सिक्किम, मणिपुर में काले चावलों की खेती शुरू की गई। जिसके बाद धीरे-धीरे इन चावलों की खेती अब मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में भी की जा रही है। इसकी खेती में खाद, कीटनाशक का उपयोग नहीं होता, जिस वजह से इसकी खेती में लागत कम आती है, इसके चावल में रसायनों का खतरा भी नहीं होता। यही कारण है की कालाधान की पैदावार सामान्य धान की तुलना में कम होने के बावजूद भी किसानों को इससे अच्छा मुनाफा होता है।

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 पौधे के टूटने की समस्या नहीं होती
इन्हें तैयार होने में लगभग 100 से 110 दिन लगते हैं। एक बीघा जमीन में तीन किलों बीज लगाया जा सकता है। यह कम पानी वाली जगह में भी आसानी से लग जाते हैं।इनके पौधे सामान्य धान के पौधे से थोड़े लम्बे होते हैं। ये पौधे काफी मजबूत होते हैं। जिससे तेज हवाओं में भी इनके पौधे के टूटने की समस्या नहीं होती।

रंग बदलकर बैगनी-नीला हो जाता है
औषधीय गुणों से भरपूर इन चावलों की मांग विदेशों में भी काफी है। इनमें ब्राउन राईस से ज्यादा गुण होते हैं। इसमें विटामिन ई, विटामिन बी, आयरन, कैल्शियम, जिंक जैसे पोषक तत्व शामिल है। पकने के बाद इनका रंग बदलकर बैगनी–नीला हो जाता है। अब तो कई राज्यों की सरकारें भी इसकी खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं, ताकि इससे और अधिक मुनाफ़ा मकाया जा सके।

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