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कान्हा की दानलीला का गवाह दानघाटी मंदिर,भगवान ने गोपियों से मांगा था दान

ब्रज की रज और कण-कण में द्वापर युगीन श्रीराधाकृष्ण की लीलाएं छिपी हैं। इन्हीं लीलाओं का साक्षी तलहटी का दानघाटी मंदिर है। जिस पड़ाव से भक्त मस्तक पर रज लगाकर परिक्रमा करते हैं, उसी के समीप गिरिराज महाराज के साक्षात दर्शन होते हैं। इस जगह पर भगवान श्रीकृष्ण ने प्रेम-कलह में नौंक-झौंक के साथ गोपियों के संग दान लीला की है।

By संतोष सिंह 
Updated Date

गोवर्धन। ब्रज की रज और कण-कण में द्वापर युगीन श्रीराधाकृष्ण की लीलाएं छिपी हैं। इन्हीं लीलाओं का साक्षी तलहटी का दानघाटी मंदिर है। जिस पड़ाव से भक्त मस्तक पर रज लगाकर परिक्रमा करते हैं, उसी के समीप गिरिराज महाराज के साक्षात दर्शन होते हैं। इस जगह पर भगवान श्रीकृष्ण ने प्रेम-कलह में नौंक-झौंक के साथ गोपियों के संग दान लीला की है।

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मान्यता है कि द्वापर युग में मथुरा के राजा कंस को ब्रज की गोपियां कर के रूप में दही-माखन लेकर जाती हैं, तो बीच पड़ाव में उनकी भेंट कान्हा से होती है जो कि स्वयं गिरिराज महाराज की तलहटी में सुबल, मधुमंगल आदि सखाओं के साथ गाय चरा रहे हैं। जब गोपियां रास्ते से होकर जा रही हैं तो कृष्ण ने उनसे दान मांगा है। इस पर गोपियों ने इनकार किया है और कृष्ण और बाल सखा मित्रों के साथ खूब नौंक-झौंक हुई। यही भगवान की प्रेम तत्व की लीला है। यही लीला रास मंचन में देखने को मिलती है। लीलाओं के साक्षी दानघाटी मंदिर में आज करोड़ों श्रद्धालु आस्था को नमन करने पहुंचते हैं।

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यहां विराजमान गिरिराज महाराज का सांय बेला में श्रीकृष्ण के रूप में श्रृंगार होता है। द्वापर युगीन लीलाओं के भाव में फूल बंगला, अन्नकूट मनोरथ, छप्पन भोग आदि नाना प्रकार के आयोजन होते हैं। गिरिराज महाराज पर टनों दूध चढ़ता है। यहां के नित्य उत्सव के आंनद में श्रद्धालु डूबे रहते हैं। कोई यहां मंगलाभिषेक के दर्शन करने आता है तो कोई दूध चढ़ाने। गिरिराज महाराज सबकी मनोकामना पूरी करते हैं। भजन संध्या और भक्ति भाव के आयोजनों में श्रद्धालु जमकर आंनद उठाते हैं।

भंडारा लगाकर सेवा कर रहे हैं सेवाभावी भक्त

मुड़िया पूर्णिमा मेला में श्रद्धालुओं के स्वागत के सत्कार के लिए तरह-तरह के व्यंजन भंडारों में स्वयंसेवी संस्थाएं वितरण कर रही हैं। जैसे-जैसे मुड़िया पूर्णिमा मेला में भीड़ बढ़ रही है। वैसे-वैसे सेवा करने वाले श्रद्धालु भी सेवा सत्कार करने में जुटे हैं। परिक्रमा के कम-कम दूरी पर भंडारे व प्रसादी वितरण के कार्यक्रम चल रहे हैं। पानी के लिए प्याऊ तो कतार बद्ध श्रंखला में लगी हैं। भक्तों के लिए भंडारे में पूंड़ी, कचैड़ी, सब्जी, पैंठा, हलवा, चाय, कोल्ड डिंªक, आईसक्रीम, फल, आम-केला आदि मनुहार के साथ वितरित किये जा रहे हैं। सेवा करने वाले श्रद्धालु सेवा सत्कार पुण्य कमाने में जुटे हैं। परिक्रमा मार्ग में धर्मार्थ में प्याऊ भंडारे लगातार पांच दिन जल सेवा व भंडारे में प्रसादी का आयोजन किया जा रहा है। बंबई, दिल्ली, अलवर, राजस्थान, हरियाणा, बरेली पंजाब, मध्यप्रदेश के अलग-अलग शहरों से भक्त आकर भंडारा सेवा कर रहे हैं। सेवा करने वाले सेवाभावी भक्त परिक्रमार्थियों को की सेवा में शिविर लगाये हुए हैं।

गोवर्धन मुडिया मेला में उमड़ने लगा 21 किमी लंबा कारवां

भक्ति के पुष्पों से गिरिराज का आंगन मुस्करा रहा है। गोवर्धन की धरा विभिन्न संस्कृति और भाषाओं का संगम बन चुकी है। गिरिराज प्रभु के प्रति अटूट विश्वास की डोर में बंधे भक्तों का 21 किमी लंबा कारवां बन चुका है। विश्व प्रसिद्ध मुडिया मेला पर गिरिराज प्रभु की नगरी में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं, गर्मी, उमस और दोपहर में धूप हठ भक्तों के विश्वास से हारने लगा। सप्तकोसिय परिक्रमा में तेज धूप थी, लेकिन भक्तों की पदचाप थमने का नाम नहीं ले रही थी। शाम के होते ही परिक्रमा करने वालों का रेला एकदम से बढ़ गया। सैकड़ों श्रद्धालु भक्त गोवर्धन आने वाली बस की छतों तक भरी हुई थीं। यात्रियों के दबाव के चलते गिरिराज तलहटी के चारों तरफ जाम की स्थिती बनी रही।

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भक्ति का ये समंदर अभी पूरे उफान की और चढ़ने लगा है। चारों पहर उठ रही आस्था की लहरें ब्रज भूमि को सींच रही हैं और पुण्यामृत से सराबोर हो रहे हैं वह हजारों-लाखों श्रद्धालु, जिनके हर रास्ते की मंजिल अभी सिर्फ भगवान गोवर्धन ही हैं। मुड़िया पूनो के पावन पर्व पर ऐसा लग रहा है, जैसे कि दुनिया गिरिराज की सप्तकोसीय परिक्रमा में आकर सिमट गई है।

सैकड़ों-हजारों मील की दूरी तय कर आने वाले लोग रात्रि के किसी भी क्षण गिरिराज महाराज की परिक्रमा शुरू करने को आतुर हैं। हजारों श्रद्धालुओं के कदम पूर्ण पुण्य की कामना लिए इस पावन धरती नाप रहे हैं। राधा-कृष्ण नाम का जयघोष करते समय श्रद्धालुओं का रोम-रोम विह्वल हो रहा है। उनके मन में श्याम से मिलन की हर वक्त तड़प महसूस हो रही है। बैरीकेडिंग की वजह से मानसी गंगा में स्नान करने की मंशा तो पूरी नहीं हो पा रही, लेकिन यहां लगे फव्वारों से अधिकतर श्रद्धालु स्नान कर धन्य हो रहे हैं।

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