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पिता दशरथ का राम ने नहीं बल्कि इन्होने किया था पिंडदान, ये सब बने थे साक्षी

किसी भी शख्स की मौत के बाद पिंडदान का अधिकार उसके बेटे का होता है। लेकिन अगर बात करें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की तो ऐसा कहा जाता है कि उन्होने अपने पिता दशरथ का पिड़दान नहीं किया था। ऐसे में ये सवाल उठना लाज़मी है कि अगर श्रीराम ने राजा दशरथ का पिंडदान नहीं किया तो फिर किसने किया?

By आराधना शर्मा 
Updated Date

उत्तर प्रदेश: किसी भी शख्स की मौत के बाद पिंडदान का अधिकार उसके बेटे का होता है। लेकिन अगर बात करें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की तो ऐसा कहा जाता है कि उन्होने अपने पिता दशरथ का पिड़दान नहीं किया था। ऐसे में ये सवाल उठना लाज़मी है कि अगर श्रीराम ने राजा दशरथ का पिंडदान नहीं किया तो फिर किसने किया?

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यह बात तो हर कोई जानता है कि सीता, राम और लक्ष्मण जब 14 साल का वनवास काटने के लिए अयोध्या से निकले थे, तब उनके वियोग में राजा दशरथ ने अपने प्राण त्याग दिए। वाल्मिकी रामायण के मुताबिक राजा दशरथ का अंतिम संस्कार भरत और शत्रुघ्न ने किया था। लेकिन राजा दशरथ का पिंडदान राम ने नहीं बल्कि सीता ने किया था।

गया स्थल पुराण की एक पौराणिक कहानी के मुताबिक राजा दशरथ की मौत के बाद भरत और शत्रुघ्न ने अंतिम संस्कार की हर विधि को पूरा किया था। लेकिन राजा दशरथ तो सबसे ज्यादा प्यार अपने बड़े बेटे राम से ही करते थे।

इसलिए अंतिम संस्कार के बाद उनकी चिता की बची हुई राख उड़ते-उड़ते गया में नदी के पास पहुंची। उस वक्त राम और लक्ष्मण स्नान कर रहे थे, जबकि सीता नदी के किनारे बैठकर रेत को हाथ में लेकर किसी विचार में खोई हुई थीं। तभी सीता ने देखा कि राजा दशरथ की छवि रेत पर दिखाई दे रही है।

सीता को यह समझने में ज़रा सी भी देर नहीं लगी कि राजा दशरथ की आत्मा राख के ज़रिए उनसे कुछ कहना चाहती है। राजा ने सीता से अपने पास समय कम होने की बात कहते हुए अपने पिंडदान करने की विनती की।

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सीता ने पीछे मुड़कर देखा तो दोनों भाई नदीं में स्नान करने में लगे हुए थे। जिसके बाद सीता ने खुद राजा दशरथ की इच्छा पूरी करने के लिए उस फाल्गुनी नदी के तट पर पिंडदान करने का फैसला किया।

पिंडदान के साक्षी

सीता ने राजा दशरथ की राख को मिलाकर अपने हाथों में उठा लिया। इस दौरान उन्होने वहां मौजूद फाल्गुनी नदी, गाय, तुलसी, अक्षय वट और एक ब्राह्मण को इस पिंडदान का साक्षी बनाया। पिंडदान करने के बाद जैसै ही श्रीराम और लक्ष्मण सीता के करीब आए।

तब सीता ने उन्हे ये सारी बात बताई। लेकिन राम को सीता की बातों पर यकीन नहीं हुआ। जिसके बाद सीता ने पिंडदान में साक्षी बने पांचों जीवों को बुलाया। लेकिन राम को गुस्से में देखकर फाल्गुनी नदी, गाय, तुलसी और ब्राह्मण ने झूठ बोलते हुए ऐसी किसी भी बात से इंकार कर दिया। जबकि अक्षय वट ने सच बोलते हुए सीता का साथ दिया। तब गुस्से में आकर सीता ने झूठ बोलने वाले चारों जीवों को श्राप दे दिया। जबकि अक्षय वट को वरदान देते हुए कहा कि तुम हमेशा पूजनीय रहोगे और जो लोग भी पिंडदान करने के लिए गया आएंगे।

उनकी पूजा अक्षय वट की पूजा करने के बाद ही सफल होगी। तो इस तरह से हुआ था दशरथ का पिंडदान! बहरहाल रामायण से जुड़ी कई ऐसी कहानियां हैं, जो तकरीबन हर कोई जानने की इच्छा रखता है। रामायण की पौराणिक कहानियां आज भी कोई न कोई सीख देती हैं। जैसे सीता के ज़रिए राजा दशरथ का पिंडदान करने की इस कथा से यह सीख मिलती है कि सिर्फ बेटा ही नहीं बल्कि बेटियां भी पिंडदान करने का अधिकार रखती हैं।

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