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इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों का फंडिंग केस, सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की पीठ को भेजा, सुनवाई 30 अक्तूबर को

देश के  राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) के जरिए मिलने वाले चुनावी चंदा  मामले में अब सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ 30 अक्तूबर को सुनवाई करेगी। इस मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में हुई  सुनवाई के बाद यह आदेश दिया है।

By संतोष सिंह 
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नई दिल्ली। देश के  राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) के जरिए मिलने वाले चुनावी चंदा  मामले में अब सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ 30 अक्तूबर को सुनवाई करेगी। इस मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में हुई  सुनवाई के बाद यह आदेश दिया है। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड (Chief Justice DY Chandrachud) , जस्टिस जेबी पारदीवाला (Justice JB Pardiwala) और जस्टिस मनोज मिश्रा (Justice Manoj Mishra) की बेंच ने दिया है। कोर्ट ने पांच जजों की पीठ द्वारा इस मामले पर सुनवाई के लिए 30 अक्तूबर की तारीख भी मुकर्रर कर दी है।

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कोर्ट ने कहा कि उसे इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds)  की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर एक आवेदन मिला, जिसमें कहा गया था कि इस पर अंतिम निर्णय के लिए इसे बड़ी बेंच के पास भेजा जाए। गौरतलब है कि इससे पहले वकील प्रशांत भूषण (Advocate Prashant Bhushan) ने बेंच के सामने कहा था कि 2024 के आम चुनाव के लिए यह योजना शुरू होने से पहले इसका न्यायिक परीक्षण (Judicial Trial) जरूरी है।

इस मामले पर चार जनहित याचिकाएं लंबित हैं। इनमें से एक याचिकाकर्ता ने मार्च में कहा था कि चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds)   के माध्यम से राजनीतिक दलों को अब तक 12,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है और इसकी दो-तिहाई राशि एक प्रमुख राजनीतिक दल को गई है। दावा किया जाता है कि राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds)   को दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में पेश किया गया है।

गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ओर से पेश भूषण ने कहा, चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds)  के जरिये अज्ञात स्रोतों से होने वाली फंडिंग भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है और भ्रष्टाचार मुक्त देश में रहने के नागरिकों के अधिकार का हनन कर रही है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।

 

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