श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के बाद गणेश चतुर्थी का इंतजार सबको रहता है। भगवान गणपति के आगमान की तैयारियां और पूरी पूजा धूमधाम से मनाने की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए पूरा देश बेसब्री से इंतजार कर रहा है। गणपति के भक्तों में गणेश महोत्सव को लेकर उत्साह बना हुआ है।
गणेश चतुर्थी 2021: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के बाद गणेश चतुर्थी का इंतजार सबको रहता है। भगवान गणपति के आगमान की तैयारियां और पूरी पूजा धूमधाम से मनाने की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए पूरा देश बेसब्री से इंतजार कर रहा है। गणपति के भक्तों में गणेश महोत्सव को लेकर उत्साह बना हुआ है। वैसे तो देश भर में गणेश पूजा पर धूम रहती है लेकिन महाराष्ट्र में इसका महत्व विशेष है। वहीं अन्य राज्यों जैसे गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना, यूपी और आंध्र प्रदेश में काफी धूमधाम से गणेश उत्सव मनाया जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार,भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को सबसे बड़ी गणेश चतुर्थी माना जाता है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इस दिन लोग गणपति बप्पा को अपने घर लेकर आते हैं और 10 दिनों तक उनकी सेवा की जाती है।
इस बार गणेश चतुर्थी का शुभ मुहूर्त इस दिन 12:17 बजे शुरू होकर और रात 10 बजे तक रहेगा। पूजन के दौरान भगवान गणेश के मंत्र का जाप जरूर किया जाता है। पूजन के दौरान श्री गणेश स्तोत्र का पाठ करना शुभ होता है।
इस बार गणेश महोत्सव की शुरुआत 10 सितंबर 2021 से हो रही है। गणेशोत्सव का पहला दिन भगवान गणेश के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इसे विनायक चतुर्थी या गणेश चौथ के नाम से भी जाना जाता है। भारत के दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में इस पर्व पर एक अलग ही धूम देखने को मिलती है। इस दिन लोग सार्वजनिक पंडालों में विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी की मूर्ती स्थापित करते हैं और 10 दिनों तक निरंतर गणपति बप्पा की पूजा अर्चना करते हैं।
गणेश उत्सव कहीं दो या तीन दिनों तक तो कहीं दस दिनों तक मनाया जाता है। गणेश पूजा को महोत्सव के रूप में दस दिनों तक मनाने के बाद अनंत चतुर्दशी पर भगवान गणेश को विदाई देने की परंपरा है। विसर्जन पर जहां एक ओर भगवान श्री गणेश के भक्त झूमते-गाते हैं तो वहीं उनके अगले साल लौटने की प्रार्थना भी होती है।
श्री गणेश स्तोत्र
प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।
भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।
प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।2।।
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ।।3।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।4।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।6।।
जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।8।।