गुजरात में भारतीय जनता पार्टी (BJP) 1995 से लगातार सत्ता पर काबिज है। इसके बावजूद गुजरात विधानसभा (Gujarat Legislative Assembly) की लगभग एक दर्जन सीटें ऐसी हैं, जिन्हें सत्ता में होने के बावजूद पिछले डेढ़ दशक से भाजपा जीतने में नाकाम रही है।
नई दिल्ली। गुजरात में भारतीय जनता पार्टी (BJP) 1995 से लगातार सत्ता पर काबिज है। इसके बावजूद गुजरात विधानसभा (Gujarat Legislative Assembly) की लगभग एक दर्जन सीटें ऐसी हैं, जिन्हें सत्ता में होने के बावजूद पिछले डेढ़ दशक से भाजपा जीतने में नाकाम रही है।
चुनाव आयोग की वेबसाइट (Election Commission website) से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक 1998 से लेकर 2017 तक गुजरात में हुए पांच विधानसभा चुनावों में भाजपा (BJP) जिन सीटों को जीत नहीं सकी हैं उनमें बनासकांठा जिले की दांता, साबरकांठा की खेडब्रह्मा, अरवल्ली की भिलोड़ा, राजकोट की जसदण और धोराजी, खेड़ा जिले की महुधा, आणंद की बोरसद, भरूच की झगाडिया और तापी जिले की व्यारा शामिल हैं।
इनमें से दांता, खेडब्रह्मा, भिलोड़ा, झागड़िया और व्यारा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटें हैं, जबकि जसडण, धोराजी, महुधा और बोरसड सामान्य श्रेणी में आती हैं। वलसाड जिले की कपराडा भी एक ऐसी आरक्षित (ST) सीट है, जिसे भाजपा 1998 के बाद हुए किसी भी विधानसभा चुनाव में नहीं जीत सकी है। यह सीट 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के जीतू भाई हरिभाई चौधरी ने यहां से जीत हासिल की थी। परिसीमन से पहले यह सीट मोटा पोंढा के नाम से अस्तित्व में थी। इसके ज्यादातर हिस्से को शामिल कर 2008 में कपराडा सीट अस्तित्व में आई थी और 1998 से इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा।
इसी प्रकार परिसीमन से पहले खेड़ा जिले में कठलाल विधानसभा सीट (Kathalal Assembly Seat)थी। आजादी के बाद हुए सभी चुनावों में इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा। पहली बार, भाजपा ने 2010 में इस सीट पर उपचुनाव में जीत दर्ज की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री थे। हालांकि, परिसीमन के बाद कठलाल सीट का अस्तित्व खत्म कर उसका कपडवंज में विलय कर दिया गया। इसके बावजूद 2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने यहां से जीत दर्ज की। 2007 के चुनाव में कपडवंज सीट कांग्रेस ने जीती थी, लेकिन इससे पहले के तीन चुनावों में इस सीट पर भाजपा (BJP) का दबदबा रहा।
अनुसूचित जनजाति वाली सीटें भाजपा के लिए चुनौती
भाजपा (BJP) जिन सीटों को नहीं जीत सकी हैं, उनमें से ज्यादातर सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित है। गुजरात की 182 सदस्यीय विधानसभा में 27 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए और 13 सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। इस साल के अंत तक गुजरात विधानसभा के चुनाव होने हैं।
बता दें कि, नब्बे के दशक से ही गुजरात में भाजपा (BJP)का दबदबा बढ़ा है और 1995 के बाद से अब तक हुए सभी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन (2017 को छोड़कर) बेहद निराशाजनक रहा है। इस दौरान हुए चुनावों में तकरीबन चार दर्जन सीटें ऐसी रहीं, जिन्हें वह कभी भी नहीं जीत सकी है।
स्थानीय कारक की वजह से भाजपा इन सीटों पर जीत हासिल करने में नाकाम
‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS)’ के शोध कार्यक्रम ‘लोकनीति’ के सह-निदेशक संजय कुमार ने कहा कि आरक्षित सीटों पर हार जीत का अर्थ यह नहीं है कि जिस समुदाय के लिए सीटें आरक्षित हैं, वह बहुसंख्यक है। उन्होंने कहा कि अन्य जातियां भी तो होती हैं और कई स्थानीय कारक रहे होंगे, जिनकी वजह से भाजपा (BJP)इन सीटों पर जीत हासिल करने में नाकाम रही है और कांग्रेस सफल रही है।
उन्होंने कहा कि यह जरूर है कि इन आंकड़ों से एक संकेत मिलता है कि इन सीटों पर कुछ अलग तरह की बात है, जिसकी वजह से अन्य सीटों के मुकाबले भाजपा और कांग्रेस को यहां एक-दूसरे से संघर्ष करना पड़ता है। सीएसडीएस (CSDS) के आंकड़ों के मुताबिक, गुजरात में अनुसूचित जनजाति (Sheduled Tribe) की आबादी 14 प्रतिशत के करीब है, जबकि अनुसूचित जाति (Scheduled Caste)की आबादी सात प्रतिशत के आसपास है।