हिंदू धर्म में ब्रत त्योहारों का सिलसिला वर्ष् भर चलता रहता है। त्योहारों की रौनक और धूमधाम के पीछे एक ठोस आधार जुड़ा रहता है।
नई दिल्ली: हिंदू धर्म में ब्रत त्योहारों का सिलसिला वर्ष् भर चलता रहता है। त्योहारों की रौनक और धूमधाम के पीछे एक ठोस आधार जुड़ा रहता है। हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विनी मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित पुत्रिका व्रत मनाया जाता है। जिसे जितिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। महिलाएं पितृपक्ष में अश्विनी कृष्ण अष्टमी तिथि को ये व्रत रखती हैं। महिलाएं निर्जला रहकर करती हैं। हिंदू धर्म में महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा कठिन व्रत जीवित पुत्रिका व्रत को माना जाता है। मान्यता है कि अगर कोई इस व्रत की कथा को सुनता है तो उसके जीवन में कभी संतान वियोग नहीं होता।इस साल यह व्रत 28 सितंबर से शुरू होकर 30 सितंबर तक चलेगा।
जीवित पुत्रिका का यह व्रत वे सौभाग्यवती स्त्रियां रखती हैं, जिनको पुत्र होते हैं। इसके साथ ही जिनके पुत्र नहीं होते वह भी पुत्र की कामना और बेटी की लंबी आयु के लिए इस व्रत को पूरे विधि-विधान से रखती हैं। व्रत जितिया लगातार तीन दिनों तक चलता है।
पहला दिन– स्नान के बाद भोजन लें, प्रभु का स्मरण करें।
दूसरा दिन– जितिया निर्जला व्रत रखें।
तीसरा दिन– पारण करें।
स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान जीमूतवाहन की पूजा करें। इसके लिए कुशा से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित करें। इस व्रत में मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है। इनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है। पारण के बाद यथाशक्ति दान और दक्षिणा दें।