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Kalyan Singh Jeevan Parichay: एक किसान के बेटे ने गांव की पगडंडी से मुख्यमंत्री तक सफर कैसे तय किया, जानें कुछ अनसुने किस्से

उत्‍तर प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री कल्‍याण सिंह का शनिवार की शाम लखनऊ स्थित पीजीआई में निधन हो गया। 89 साल की उम्र में उन्‍होंने अंतिम सांस ली। कल्‍याण सिंह के निधन पर उत्‍तर प्रदेश में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया है।

By प्रिन्स राज 
Updated Date

Kalyan Singh Jeevan Parichay: उत्‍तर प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री कल्‍याण सिंह(Kalyan Singh) का शनिवार की शाम लखनऊ स्थित पीजीआई में निधन हो गया। 89 साल की उम्र में उन्‍होंने अंतिम सांस ली। कल्‍याण सिंह के निधन पर उत्‍तर प्रदेश में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया है। कल्याण सिंह का जन्म अतरौली(Atrauli) तहसील के गांव मढ़ौली में पांच जनवरी सन् 1932 को हुआ। उनके पिता तेजपाल सिंह लोधी(Lodhi) एक किसान थे और उनकी माता सीता देवी एक घरेलू महिला।

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कल्याण सिंह बचपन से ही आरएसएस की शाखाओं में जाने लगे थे। देश को आजादी(Aajadi) दिलाने की इच्छा उनके दिल में हिलोरें मारने लगी थी। देश आजाद होने पर उच्च शिक्षा ग्रहण करने पर उनके शिक्षक के रूप में अपने करियर प्रांरभ किया। वह लगातार संघ से जुड़कर राजनीति(Politics) के गुर सीखने लगे। वर्ष 1962 में उन्होंने अतरौली विधानसभा से  से पहला चुनाव लड़ा जिसमें सोशलिस्ट पार्टी के बाबू सिंह के हांथो उन्हें हार मिली। 1967 में कांग्रेस उम्मीदवार ए सिंह को हराकर पहली बार विधानसभा पहुंचे। साल 1977 में यूपी में जनसंघ का जनता पार्टी(JP) में विलय हुआ। रामनरेश यादव के नेतृत्व में बनी सरकार में उन्हें स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया।

सन 80 के चुनाव से पहले जनता पार्टी टूट गई और कल्याण सिंह को अतरौली से पहली बार हार का सामना करना पड़ा। छह अप्रैल वर्ष 1980 में भाजपा के गठन के दौरान कल्याण सिंह को प्रदेश महामंत्री बनाया गया। अस्सी के दशक के आखिर के दौरान भाजपा के राम मंदिर आंदोलन(Ram mandir Andolan) के गति पकड़ने पर उन्हें साल 1984 में  प्रदेशाध्यक्ष की कमान सौंपी गई। राममंदिर आंदोलन में कल्याण सिंह की एक मुखर वक्ता और आंदोलन के महत्वपूर्ण राजनीतिक शख्स के रूप में पहचान बननी प्रांरभ हुई। मुलायम सिंह यादव(Mulayam Singh YAdav)की सरकार पर उन्होंने जमकर हमला बोला और गिरफ्तारियां दी।

कल्याण का इस्तीफा
छह जनवरी 1992 में अयोध्या में एकत्र हुए कारसेवकों के विवादित ढांच को गिराने के कारण देश में कई स्थानों पर दंगे(Dange) हो गए। इसी दिन शाम को ढांचा विध्वंस का सारा दोष अपने ऊपर लेते हुए कल्याण सिंह ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। राम मंदिर के अपने कुर्सी कुर्बान कर देने से कल्याण सिंह रातोंरात(Raton rat) भाजपा और हिंदूवादियों के हीरो बन गए। अगले साल हुए चुनाव में कल्याण सिंह अतरौली और कासगंज सीट से चुनाव जीते।

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दूसरी बार मुख्यमंत्री बने
साल 97 के चुनाव में जीतने के बाद कल्याण सिंह को भाजपा ने फिर से सीएम(CM) बनाया। 98 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सूबे में 56 सीट जीतकर कल्याण सिंह ने अपना दम दिखाया।

राज्यपाल बने कल्याण
2014 में नरेंद्र मोदी के पीएम बनने पर पार्टी ने उन्हें राजस्थान के राज्यपाल(Governer) के रूप में भेजा। 2015 में कुछ समय के लिए कल्याण को हिमाचल प्रदेश का भी अतिरिक्त प्रभार दिया गया।

 

 

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