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मकर संक्रांति 2021: जानिए महापुण्यकाल और मकर संक्रांति का महत्व

By आराधना शर्मा 
Updated Date

नई दिल्ली: मकर संक्रांति हिन्दू धर्म का अति महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। इस साल मकर संक्रांति का त्योहार 14 जनवरी 2021 को मनाया जाएगा। 14 जनवरी 2021 से ही समस्त शुभ कार्य प्रारंभ हो जाएंगे। मकर संक्रांति को देश के विभिन्न प्रांतों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। उत्तर भारत में जहां इसे मकर संक्रांति कहा जाता है।

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वहीं असम में इस दिन बिहू और दक्षिण भारत में इस दिन पोंगल पर्व मनाया जाता है। संक्रांति के दिन विशेष तौर पर पतंगबाजी का आयोजन होता है। इस दिन बच्चे-बुजुर्ग पूरे उत्साह के साथ अपने घर की छतों पर पतंग उड़ाते हैं और मकर संक्रांति पर्व मनाते हैं।

काशी पंचांग के अनुसार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर ही मकर संक्रांति योग बनता है। इस दिन सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है। इस साल 14 जनवरी प्रातः 08 बजकर 03 मिनट 07 सेकंड पर सूर्य उत्तरायण होंगे यानी सूर्य अपनी चाल बदलकर धनु से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। आइए जानते हैं मकर संक्रांति पर क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त।

मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त

पुण्य काल 14 जनवरी की सुबह- 8 बजकर 3 मिनट से 12 बजकर 30 मिनट तक

महापुण्य काल

14 जनवरी की सुबह- 8 बजकर 3 मिनट से 8 बजकर 27 मिनट तक सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किंतु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अंतराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहां पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किंतु मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएवं इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है।

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दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अंधकार कम होगा। अत: मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर संपूर्ण भारत वर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना,आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। इस दिन दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है।

माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।

स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥

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