भारतीय संस्कृति में अपने पूर्वजों के प्रति बहुत ही श्रद्धा का भाव रहता है। प्रचीन काल से ही पूर्वज पूजा की प्रथा विश्व के अन्य देशों में होती आ रही है। भारत में यह प्रथा यहाँ वैदिक काल से प्रचलित रही है।
पितृपक्ष 2021: भारतीय संस्कृति में अपने पूर्वजों के प्रति बहुत ही श्रद्धा का भाव रहता है। प्रचीन काल से ही पूर्वज पूजा की प्रथा विश्व के अन्य देशों में होती आ रही है। भारत में यह प्रथा यहाँ वैदिक काल से प्रचलित रही है। सनातनधर्मी पितृ पक्ष में पितरों का आह्वान करते हैं।
इस बार पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष 20 सितंबर 2021, सोमवार को भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से आरंभ होंगे। पितृ पक्ष का समापन 6 अक्टूबर 2021, बुधवार को आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को होगा। श्राद्ध पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक कुल 16 दिनों तक चलता है। श्राद्ध का पहला दिन और आखिरी दिन महत्वपूर्ण होता है। आईये जानते हैं कि पहले श्राद्ध में क्या करते हैं।
पूर्वजों के देवलोक गमन की तिथि को शास्त्रानुसार पिण्ड दान
श्राद्ध विधान के अनुसार पूर्वजों के देवलोक गमन की तिथि को शास्त्रानुसार पिण्ड दान करके पूर्वजों के प्रति आस्था प्रकट की जाती है। इसके साथ ही देवताओं से यह प्रार्थना की जाती है कि हमारे पितृगण जहां भी उन्हें सुख, शान्ति मिले।
श्राद्ध की 16 तिथियां होती हैं, पूर्णिमा, प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या। उक्त किसी भी एक तिथि में पुर्वज की मृत्यु होती है वह चाहे कृष्ण पक्ष की तिथि हो या शुक्ल पक्ष की। पितृ पक्ष में जब यह तिथि आती है तो जिस तिथि में व्यक्ति की मृत्यु हुई है उस तिथि में उसका श्राद्ध करने का विधान है।
ऋषि तर्पण
पूर्णिमा के श्राद्ध को ऋषि तर्पण भी कहा जाता है। इस दिन मंत्रदृष्टा ऋषि मुनि अगस्त्य का तर्पण किया जाता है। इन्होंने ऋषि मुनियों की रक्षा के लिए समुद्र को पी लिया था और दो असुरों को खा गए थे। इसी के सम्मान में श्राद्धपक्ष की पूर्णिका तिथि को इनका तर्पण करके ही पितृपक्ष की शुरुआत की जाती है।