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Sawan Mein Shankh : पूजा स्थल पर शंख रखने से घर में आती है सुख-समृद्धि , शिव की पूजा में वर्जित माना जाता है

सावन ,शिव सभ्यता अनवरत चलती आ रही है। युगों- युगों से शिव सावन की प्यासी धरती इस माह में तृप्त होती है। जन कल्याण देवता के रूप में जाने जाने वाले शिव को प्रकृति का यह अवसर सर्वाधिक प्रिय है।

By अनूप कुमार 
Updated Date

Sawan Mein Shankh :  सावन ,शिव सभ्यता अनवरत चलती आ रही है। युगों- युगों से शिव सावन की प्यासी धरती इस माह में तृप्त होती है। जन कल्याण देवता के रूप में जाने जाने वाले शिव को प्रकृति का यह अवसर सर्वाधिक प्रिय है। इस माह में शिव अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते है। सनातन धर्म में शिव और सावन का उच्चारण ही स्वभाव में डुबो देता है। हरशली की चादर ओढ़े धरती शांति का संदेश देती है। पौराणिक ग्रंथों मंे वर्णित शिव जगत का आधार है। मान्यता है कि शिव की कृपा मात्रा से भक्त को मोछ की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सावन माह में शिव की पूजा में शंख को वर्जित माना जाता है। शिव पूजा में शंख का प्रयोग नहीं किया जाता है। आइये जानते है शिव पूजा में शंख का प्रयोग क्यों नही किया जाता है।

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शिवपुराण की कथा के अनुसार दैत्यराज दंभ की कोई संतान नहीं थी। उसने संतान प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु की कठिन तपस्या की थी। दैत्यराज के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उससे वर मांगने को कहा। तब दंभ ने महापराक्रमी पुत्र का वर मांगा   विष्णु जी तथास्तु कहकर अंतर्धान हो गए। इसके बाद दंभ के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम शंखचूड़ पड़ा।

ब्रह्मा की आज्ञा से तुलसी और शंखचूड़ का विवाह संपन्न हुआ
शंखचूड़ ने पुष्कर में ब्रह्माजी को खुश करने के लिए घोर तप किया तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव ने वर मांगने के लिए कहा तो शंखचूड़ ने वर मांगा कि वो देवताओं के लिए अजेय हो जाएण् ब्रह्माजी ने तथास्तु कहकर उसे श्रीकृष्ण कवच दे दिया। इसके बाद ब्रह्मा जी ने शंखचूड के तपस्या से प्रसन्न होकर उसे धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा देकर वे अंतर्धान हो गए। ब्रह्मा की आज्ञा से तुलसी और शंखचूड़ का विवाह संपन्न हुआ।

ब्रह्माजी के वरदान मिलने से शंखचूड़ ने अहम में आ गया और तीनों लोकों में अपना स्वामित्व स्थापित कर लिया शंखचूड़ से त्रस्त होकर देवताओं ने त्रस्त होकर विष्णु जी के पास जाकर मदद मांगी लेकिन भगवान विष्णु ने खुद दंभ पुत्र का वरदान दे रखा था इसलिए विष्णु जी ने शंकर जी की आराधना की इसके बाद शिवजी ने देवताओं की रक्षा के लिए चल दिए । लेकिन श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पतिव्रत धर्म की वजह से शिवजी भी उसका वध करने में सफल नहीं हो पा रहे थे।

जिसके बाद विष्णु जी ने ब्राह्मण रूप धारण कर दैत्यराज से उसका श्रीकृष्ण कवच दान में ले लिया और शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के शील का हरण किया इसके बाद भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से शंखचूड़ का वध किया। ऐसी मान्यता है कि उसकी हड्डियों से शंख का जन्म हुआ और वो विष्णु जी का प्रिय भक्त था । यही कारण है कि भगवान विष्णु को शंख से जल चढ़ाना बहुत शुभ होता है। जबकि भगवान शंकर ने उसका वध किया था। इसलिए शंकर जी की पूजा में शंख का प्रयोग करना वर्जित है।

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