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Astrology : Shani Dev की विशेष कृपा के लिए इस शनिवार को करें ये काम, इन राशि वालों को बना सकते हैं राजा

Astrology : ज्योतिष में शनिदेव (Shani Dev) को विशेष स्थान प्राप्त है। धर्म शास्त्रों में शनिदेव (Shani Dev) को पापी और क्रूर ग्रह कहा जाता है। शनिदेव (Shani Dev) के अशुभ होने पर व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि शनिदेव (Shani Dev) सिर्फ अशुभ फल देते हैं। शनिदेव (Shani Dev) शुभ फल भी प्रदान करते हैं।

By संतोष सिंह 
Updated Date

Astrology : ज्योतिष में शनिदेव (Shani Dev) को विशेष स्थान प्राप्त है। धर्म शास्त्रों में शनिदेव (Shani Dev) को पापी और क्रूर ग्रह कहा जाता है। शनिदेव (Shani Dev) के अशुभ होने पर व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि शनिदेव (Shani Dev) सिर्फ अशुभ फल देते हैं। शनिदेव (Shani Dev) शुभ फल भी प्रदान करते हैं।

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अगर शनिदेव (Shani Dev) के शुभ होने पर व्यक्ति का भाग्योदय हो जाता है। शनिदेव (Shani Dev) रंक को भी राजा बना सकते हैं। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार तुला, कुंभ और मकर राशि पर शनिदेव की विशेष कृपा रहती है। शनिदेव (Shani Dev) की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए शनिवार के दिन दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

राजा दशरथ ने शनिदेव (Shani Dev) को प्रसन्न करने के लिए इस स्तोत्र की रचना की थी। दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनिदेव (Shani Dev) की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

राजा दशरथ कृत शनि स्तोत्र

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।

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नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ  वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।

नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।

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तपसा दग्धदेहाय नित्यं  योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।

देवासुरमनुष्याश्च  सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।

प्रसाद कुरु  मे  देव  वाराहोऽहमुपागत।
एवं स्तुतस्तद  सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।

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