बंकरों में हज़ारों भारतीय बच्चे में रह रहे हैं। बंकर अब गंदे होने लगे हैं। पानी नहीं है। शौचालय नहीं है। बच्चे खाना नहीं बना सकते हैं, फल खाकर रह रहे हैं। सोशल मीडिया पर सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं,
बंकरों में हज़ारों भारतीय बच्चे रह रहे हैं। बंकर अब गंदे होने लगे हैं। पानी नहीं है। शौचालय नहीं है। बच्चे खाना नहीं बना सकते हैं, फल खाकर रह रहे हैं। सोशल मीडिया पर सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं, उनकी विडियो फ़ोटो देख मन उदास हो जा रहा। सोचिए उस माँ बाप के जो अपने बच्चों को ऐसे बिलखते देख रहे हैं। लाचारी और बेबसी के मारे कुछ कर तक नहीं पा रहे।
लखनऊ की बेटी गरिमा मिश्रा जो यूक्रेन में फँसी हुई है। सोशल मीडिया पर आकर बता रही हैं कि कैसे रशिया के लोग बेटियों को उठा कर ले जा रहे हैं, इससे डरावना और क्या हो सकता है।
यूक्रेन से अपने नागरिकों के निकलने की एडवाइज़री जारी करने में भारत ने काफी देर कर दी। 24 जनवरी को आस्ट्रेलिया ने और 11 फरवरी को 11 फरवरी को अमरीका, ब्रिटेन,जापान, नीदरलैंड ने अपने नागरिकों को 24-48 घंटे के भीतर यूक्रेन छोड़ने के लिए कह दिया। उसके अगले दिन यानी 12 फरवरी तक एक दर्जन देशों ने अपने-अपने नागरिकों से स्पष्ट शब्दों में कहा कि वे 24-48 घंटे के भीतर यूक्रेन छोड़ दें। लेकिन भारत ने कोई सक्रियता नहीं दिखाई। भारत ने 15 फरवरी को पहली बार एडवाइज़री जारी कि जिसकी भाषा वैकल्पिक थी। इसमें लिखा गया था कि भारतीय छात्र अस्थायी तौर पर यूक्रेन छोड़ने पर विचार कर सकते हैं। ख़ैर इस मामले में भी भारत को संदेह का लाभ दिया जा सकता है कि किसी को पता नहीं था कि 24 तारीख से अटैक हो जाएगा लेकिन सतर्कता में देरी या सुस्सी तो दिखती ही है।
ऐसा नहीं था कि भारतीय छात्र यूक्रेन के हालात को नहीं समझ रहे थे। वे आने के लिए तैयार थे मगर भारत से कोई सीधी उड़ान नहीं थी। अगर आपको जानना है तो ट्विटर पर ही जाइये। 15 फरवरी से लेकर 17 फरवरी तक कई छात्रों ने प्रधानमंत्री को टैग कर लिखा है कि यूक्रेन से कोई व्यावसायिक उड़ान नहीं है। ऐसे में उनके पास रास्ता क्या था। बीस हज़ार छात्रों को लाने के लिए बड़ी संख्या में विमानों को लगाने की ज़रूरत थी। यह छोटी संख्या नहीं है।