नई दिल्ली: स्वाधीनता संग्राम के महानायक नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कुट्टक गांव में हुआ। उनके पिता जानकीनाथ बोस वकील थे। उनकी माता का नाम प्रभावती था। सुभाषचन्द्र बोस के मन में देशप्रेम, स्वाभिमान और साहस की भावना बचपन से ही बड़ी प्रबल थी। वे अंग्रेज शासन का विरोध करने के लिए अपने भारतीय सहपाठियों का भी मनोबल बढ़ाते थे।
अपनी छोटी आयु में ही सुभाष ने यह जान ली थी कि जब तक सभी भारतवासी एकजुट होकर अंग्रेजों का विरोध नहीं करेंगे, तब तक हमारे देश को उनकी गुलामी से मुक्ति नहीं मिल सकेगी। जहां सुभाष के मन में अंग्रेजों के प्रति तीव्र घृणा थी, वहीं अपने देशवासियों के प्रति उनके मन में बड़ा प्रेम था।
आज हम आपको एक ऐसी घटना के बारे मे बताने जा रहें है जिसके बारे मे जान आपको बहुत गर्व महशुस होगा। आप को अभी तक यही जानकारी होगी कि हम 26 जनवरी को राष्ट्रीय पर्व यानी गणतंत्र दिवस के रूप में मानते हैं। क्योंकि इसी दिन भारत का संविधान लागू हुआ था । साथ ही 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में इसलिए भी चुना गया था क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था।
लेकिन एक तथ्य और भी है। इसकी लोगों को बहुत कम जानकारी है। वह यह कि 26 जनवरी के ही दिन सुभाष चंद्र बोस ने कलकत्ता के मेयर हाउस पर तिरंगा फहराया था कहा जाता है कि नेताजी गांधी इरविन समझौते के विरोध के साथ भगत सिंह की फांसी से खफा थे। सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी भगत सिंह की फांसी रुकवाने का भरसक प्रयास किया। उन्होंने गांधी जी से कहा कि वह अंग्रेजों से किया अपना वादा तोड़ दें और भगत सिंह को किसी भी प्रकार बचा लें।
लेकिन वह भगत सिंह को बचाने में नाकाम रहे। बताते चलें कि जिस दिन सुभाष चंद्र बोस ने कलकत्ता के मेयर हाउस पर तिंरगा फहराया उस दिन लोग इतने आक्रोशित थे कि उन्होंने कलकत्ता में लगी हेवलाक की मूर्ति को तोड़ दिया था।
सुभाष चंद्र बोस के तेवरों को देखकर अंग्रेजी हुकूमत को उनके इरादों में बगावत की बू आ रही थी। लिहाजा इसके बाद उन्हें दोबारा जेल में डाल दिया गया। गौरतलब है कि सुभाष चंद्र बोस 22 अगस्त 1930 को कलकत्ता के मेयर चुने गए थे। मेयर चुने जानें के दौरन वे जेल में थे।
वर्ष 1931 में अंग्रेजों ने उन्हें जेल से रिहा किया। जेल से निकलने के बाद उन्होंने सबसे पहले जो कार्य किया वह कलकत्ता के मेयर हाउस में तिरंगा फहराने का था। आपको बता दें कि अपने जीवनकाल में नेताजी को कुल 11 बार कारावास की सजा काटनी पड़ी। आखिरी बार 1941 को उन्हें कलकत्ता कोर्ट में पेश होना था लेकिन नेताजी अपने घर से भागकर जर्मनी चले गए और वहां पर उन्होंने हिटलर से मुलाकात की।
बताया जाता है कि कलकत्ता से भागने के लिए सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई शरत बोस ने उनकी मदद की थी। दरअसल, शरत बोस जो कारें खरीदते थे, नेताजी उन्हीं में बैठकर आया-जाया करते थे। दरअसल, शरत बोस को कारों का शौक था और उनके पास विलिज नाइट व फोर्ड समेत छह-सात कारें थीं. ऑडी वांडरर डब्ल्यू-24 उन्हीं में से एक थी,जिसमें बैठकर नेताजी एल्गिन रोड स्थित अपने घर में नजरबंदी के दौरान अंग्रेजों को चकमा देकर निकले थे। इस घटना को इतिहास में द ग्रेट एस्केप के नाम से जाना जाता है. सुभाष चंद्र बोस के भतीजे डॉ. शिशिर बोस उस कार को चलाकर गोमो ले गए थे.