सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसलों और दलीलों में अब जेंडर स्टीरियोटाइप (Gender Stereotype) शब्दों का इस्तेमाल नहीं होगा। कोर्ट ने महिलाओं के लिए इस्तेमाल होने वाले आपत्तिजनक शब्दों पर रोक लगाने के लिए जेंडर स्टीरियोटाइप कॉम्बैट हैंडबुक लॉन्च (Gender Stereotype Combat Handbook Launched) की है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसलों और दलीलों में अब जेंडर स्टीरियोटाइप (Gender Stereotype) शब्दों का इस्तेमाल नहीं होगा। कोर्ट ने महिलाओं के लिए इस्तेमाल होने वाले आपत्तिजनक शब्दों पर रोक लगाने के लिए जेंडर स्टीरियोटाइप कॉम्बैट हैंडबुक लॉन्च (Gender Stereotype Combat Handbook Launched) की है।
बता दें बीते 8 मार्च को महिला दिवस पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में हुए इवेंट में CJI डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने कहा था कि कानूनी मामलों में महिलाओं के लिए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल रुकेगा, जल्द डिक्शनरी भी आएगी। बुधवार 16 अगस्त को हैंडबुक जारी करते हुए CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि इससे जजों और वकीलों को ये समझने में आसानी होगी कि कौन से शब्द रूढ़िवादी हैं और उनसे कैसे बचा जा सकता है।
जेंडर स्टीरियोटाइप कॉम्बैट हैंडबुक में क्या है?
CJI चंद्रचूड़ ने बताया कि इस हैंडबुक में आपत्तिजनक शब्दों की लिस्ट है और उसकी जगह इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द और वाक्य बताए गए हैं। इन्हें कोर्ट में दलीलें देने, आदेश देने और उसकी कॉपी तैयार करने में यूज किया जा सकता है। यह हैंडबुक वकीलों के साथ-साथ जजों के लिए भी है। इस हैंडबुक में वे शब्द हैं, जिन्हें पहले की अदालतों ने यूज किया है। शब्द गलत क्यों हैं और वे कानून को और कैसे बिगाड़ सकते हैं, इसके बारे में भी बताया गया है।
हैंडबुक जागरूक करने बनाई, आलोचना करने नहीं
CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि इस हैंडबुक को तैयार करने का मकसद किसी फैसले की आलोचना करना या संदेह करना नहीं, बल्कि यह बताना है कि अनजाने में कैसे रूढ़िवादिता की परंपरा चली आ रही है। कोर्ट का उद्देश्य यह बताना है कि रूढ़िवादिता क्या है और इससे क्या नुकसान है, ताकि कोर्ट महिलाओं के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा के इस्तेमाल से बच सकें। इसे जल्द ही सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया जाएगा।
कलकत्ता हाईकोर्ट की टीम ने तैयार की शब्दावली
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने जिस कानूनी शब्दावली के बारे में बताया उसे कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) की जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य की अध्यक्षता वाली समिति ने तैयार किया है। इस समिति में रिटायर्ड जस्टिस प्रभा श्रीदेवन (Retired Justice Prabha Sridevan), जस्टिस गीता मित्तल (Justice Gita Mittal) और प्रोफेसर झूमा सेन (Professor Jhuma Sen) शामिल थीं। बता दें, झूमा सेन इस वक़्त कोलकाता में वेस्ट बंगाल नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिडिकल साइंसेज में फैकल्टी मेंबर हैं।
तीन महीने पहले LGBTQ हैंडबुक लॉन्च की थी
चीफ जस्टिस ने मार्च में कहा था कि हमने हाल ही में एक LGBTQ हैंडबुक लॉन्च की है। जल्द ही हम जेंडर के लिए अनुचित शब्दों की एक लीगल ग्लॉसरी भी जारी करने जा रहे हैं। अगर आप 376 का एक जजमेंट पढ़ेंगे तो आपको पता चलेगा कि कई ऐसे शब्द हैं जो अनुचित हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल होता है। लीगल ग्लॉसरी से हमारी न्यायपालिका छोटी नहीं होगी और समय के साथ हम कानूनी भाषा को लेकर आगे बढ़ेंगे, क्योंकि हम भाषा को विषय और चीजों से ज्यादा महत्व देते हैं।
महिला दिवस (Women’s Day) पर एक इवेंट में CJI ने बताया था कि मैंने ऐसे फैसले देखे हैं जिनमें किसी महिला के एक व्यक्ति के साथ रिश्ते में होने पर उसे रखैल लिखा गया। कई ऐसे केस थे जिनमें घरेलू हिंसा अधिनियम और IPC की धारा 498ए के तहत FIR रद्द करने के लिए आवेदन किए गए थे, उनके फैसलों में महिलाओं को चोर कहा गया है।