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यूपी में बुलडोज़र कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को दिया नोटिस, मांगा तीन दिन के अंदर जवाब

यूपी में योगी सरकार की बुलडोजर कार्रवाई के फैसले के खिलाफ दी गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई हुई। इस सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की तरफ से दलील दी गई हैं। सरकारी पक्ष की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जहां इस बुलडोजर कार्रवाई को सही ठहराया है, जबकि याचिकाकर्ता के वकील सीयू सिंह ने इस पर रोक लगाने की मांग की है।

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। यूपी में योगी सरकार की बुलडोजर कार्रवाई के फैसले के खिलाफ दी गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई हुई। इस सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की तरफ से दलील दी गई हैं। सरकारी पक्ष की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जहां इस बुलडोजर कार्रवाई को सही ठहराया है, जबकि याचिकाकर्ता के वकील सीयू सिंह ने इस पर रोक लगाने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज, कानपुर मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को हलफनामा दाखिल करने के आदेश दिए हैं।

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वहीं सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि योगी सरकार राज्य में बुलडोजर कार्रवाई कानून के अनुसार करें। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से इस मामले में तीन दिन के भीतर जवाब मांगा है।  सुप्रीम कोर्ट ने जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की ओर से दाखिल अर्जी पर सुनवाई करते हुए कहा कि सरकार को इस मसले पर राय जाहिर करने के लिए वक्त दिया जाएगा। तब तक हम उन लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे। वे लोग भी समाज का ही हिस्सा हैं। यदि किसी को कोई समस्या है तो उसे हक है कि उसका समाधान तलाशे। इस तरह से निर्माण को ढहाना कानून के तहत ही हो सकता है। इस केस की सुनवाई अब हम अगले सप्ताह करेंगे।

विध्वंस की कार्रवाई चौंकाने वाली और भयावह: याचिकाकर्ता के वकील

वहीं याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता सीयू सिंह ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि हिंसा में शामिल प्रदर्शनकारियों के खिलाफ घर विध्वंस कार्रवाई की जा रही है। सिंह ने आगे तर्क दिया कि विध्वंस बार-बार होता रहता है, यह चौंकाने वाला और भयावह है। यह आपातकाल के दौरान नहीं था, स्वतंत्रता पूर्व युग के दौरान नहीं था। ये 20 साल से अधिक समय से खड़े घर हैं। कभी-कभी ये आरोपी के नहीं बल्कि उनके वृद्ध माता-पिता के भी होते हैं, उनका तर्क है।

किसी खास समुदाय को नहीं किया जा रहा टारगेट: सॉलिसिटर जनरल

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योगी सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना है कि जहांगीरपुरी विध्वंस मामले में किसी भी प्रभावित पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर नहीं की। उन्होंने कहा कि यूपी सरकार की तरफ से पहले ही नोटिस दिया गया था। किसी के खिलाफ गलत कार्रवाई नहीं हुई। सरकार किसी खास समुदाय को टारगेट नहीं कर रही।

नोटिस देने और सुनवाई के लिए समय की मांग

जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने जमीयत की याचिका पर सुनवाई की। याचिका में यह भी कहा गया था कि राज्य सरकार को आदेश जारी किए जाएं कि कानून के मुताबिक ही संपत्ति ढाहाने की कार्रवाई की जाए। साथ ही इसमें प्रभावित व्यक्ति को नोटिस देने और सुनवाई के लिए समय देने की मांग की गई थी।

संपत्ति ढहाने को बताया प्राकृतिक न्याय के खिलाफ

जमीयत का कहना है कि संपत्ति ढहाने की तत्काल कार्रवाई प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। खास बात है कि जमीयत के आवेदन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान का भी जिक्र किया गया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि आरोपियों के मकानों को बुलडोजर की मदद से गिराया जाएगा। इसमें एडीजी (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार और कानपुर पुलिस आयुक्त विजय सिंह मीणा के बयान को भी शामिल किया गया है, जिसमें पुलिस अधिकारी दोहरा रहे हैं कि आरोपियों की संपत्ति को कब्जे में लिया जाएगा और ढहाया जाएगा।

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जमीयत ने यूपी के किस कानून का दिया हवाला

जमीयत ने उत्तर प्रदेश (रेग्युलेशन ऑफ बिल्डिंग ऑपरेशन) एक्ट 1958 की धारा 10 को लेकर कहा कि इसके तहत प्रभावित व्यक्ति को मौका नहीं मिलने तक भवन नहीं ढहाया जा सकता। इसके आगे जमीयत ने कहा है कि यूपी अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट 1973 की धारा 27 में कहा गया है कि संपत्ति ढहाने की कार्रवाई से पहले प्रभावित व्यक्ति की बात सुनी जाएगी और उन्हें कम से कम 15 दिनों का नोटिस दिया जाएगा।

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