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Supreme Court का महिलाओं के हक में बड़ा फैसला- महिलाएं, चाहे विवाहित हों या अविवाहित, सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हैं हकदार

महिलाओं के कानूनी गर्भपात (Legal Abortion) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का बड़ा फैसला आया है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने गुरुवार को कहा कि सभी महिलाएं, चाहे विवाहित (Married) हों या अविवाहित (Unmarried), सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं।

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। महिलाओं के कानूनी गर्भपात (Legal Abortion) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का बड़ा फैसला आया है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने गुरुवार को कहा कि सभी महिलाएं, चाहे विवाहित (Married) हों या अविवाहित (Unmarried), सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में संशोधन (Amendment in Medical Termination of Pregnancy Act) करते हुए कहा कि विवाहित महिला (Married Women) की तरह अविवाहित (Unmarried)को भी गर्भपात (Abortion) करने का अधिकार है।

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने कहा कि अविवाहित महिला को भी 20 से 24 सप्ताह के गर्भ को गर्भपात (Abortion) करने का अधिकार है। इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच गर्भपात के अधिकार दरअसल, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने एमटीपी कानून और इससे संबंधित नियमों के बदलाव को लेकर यह फैसला सुनाया है। SC ने विवाहित (Married) और अविवाहित महिलाओं (Unmarried Women) के बीच गर्भपात (Abortion)  के अधिकार को मिटा दिया।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) की बेंच ने कहा कि एक अविवाहित महिला को अनचाहे गर्भ का शिकार होने देना मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम के उद्देश्य और भावना के विपरीत होगा।  सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि कहा कि 2021 के संशोधन के बाद मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा-3 में पति के बजाय पार्टनर शब्द का उपयोग किया गया है। यह अधिनियम में अविवाहित महिलाओं को कवर करने के लिए विधायी मंशा को दर्शाता है। साथ ही कोर्ट ने एम्स निदेशक को एक मेडिकल बोर्ड का गठन करने के लिए कहा जो यह देखेगा कि गर्भपात से महिला के जीवन को कोई खतरा तो नहीं होगा।

दरअसल, एक महिला ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (MTP), 2003 के नियम-3 बी को चुनौती दी थी, जो कि केवल कुछ श्रेणियों की महिलाओं को 20 से 24 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देता है। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को केवल इस आधार पर लाभ से वंचित नहीं किया जाना चाहिए कि वह अविवाहित महिला है। कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया लगता है कि दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court)  ने अनुचित प्रतिबंधात्मक दृष्टिकोण अपनाया है।

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने अपने फैसले में कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (MTP) से अविवाहित महिलाओं को लिव-इन रिलेशनशिप से बाहर करना असंवैधानिक है। इस तरह से अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव नहीं कर सकते। बता दें कि 16 जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग वाली अविवाहित मणिपुरी महिला की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था।

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हाईकोर्ट ने कहा था कि गर्भ सहमति से धारण किया गया है और यह स्पष्ट रूप से मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (MTP), 2003 के तहत किसी भी खंड में शामिल नहीं है। महिला ने अपनी याचिका में कहा कि वह बच्चे को जन्म नहीं दे सकती, क्योंकि वह एक अविवाहित महिला है और उसके साथी ने उससे शादी करने से मना कर दिया है। इसमें आगे कहा गया कि अविवाहित तौर पर बच्चे को जन्म देने से उसका बहिष्कार होगा और साथ ही मानसिक पीड़ा भी होगी। दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनोती दी गयी थी।

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