ज्योतिष में नक्षत्रों की शक्ति को बहुत ही बली माना जाता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र तो पूरी तरह ग्रह नक्षत्रों पर ही आधारित है। 24-25 नवम्बर को पुष्य नक्षत्र का विशिष्ट संयोग बन रहा है।
Pushya Nakshatra: ज्योतिष में नक्षत्रों की शक्ति को बहुत ही बली माना जाता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र तो पूरी तरह ग्रह नक्षत्रों पर ही आधारित है। 24-25 नवम्बर को पुष्य नक्षत्र का विशिष्ट संयोग बन रहा है। ज्योतिषशास्त्र एवं प्राचीन ग्रंथों के अनुसार पुष्य को तिष्य अर्थात शुभ या माँगलिक तारा भी कहते हैं। पुष्य को नत्रक्षों का राजा भी कहा जाता है। पुष्य का अर्थ है पोषण करने वाला, ऊर्जा व शक्ति प्रदान करने वाला। पुष्य का प्राचीन नाम तिष्य शुभ, सुंदर तथा सुख संपदा देने वाला है।
विद्वान इस नक्षत्र को बहुत शुभ और कल्याणकारी मानते हैं। पुष्य नक्षत्र के देवता बृहस्पति हैं जो सदैव शुभ कर्मों में प्रवृत्ति करने वाले, ज्ञान वृद्धि एवं विवेक दाता हैं। इस नक्षत्र का दिशा प्रतिनिधि शनि हैं जिसे ‘स्थावर’ भी कहते हैं जिसका अर्थ होता है स्थिरता। इसी से इस नक्षत्र में किए गए कार्य चिर स्थायी होते हैं।
पुष्य नक्षत्र उत्पादन क्षमता, उत्पादकता, संरक्षणता, संवर्धन व समृ्द्धि का प्रतीक माना जाता है। कुछ विद्वान तीन तारों में चक्र की गोलाई देखते हैं। वे चक्र को प्रगति ‘रथ’ का चक्का मानते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पुष्य नक्षत्र के इस विशिष्ट संयोग में खरीदारी करना, कोई भी नया कार्य शुरू करना अक्षय फल प्रदान करता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पुष्य नक्षत्र में खरीदी गई कोई भी वस्तु बहुत लंबे समय तक उपयोगी रहती है तथा शुभ फल प्रदान करती है, क्योंकि यह नक्षत्र स्थाई होता है।