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पूजा में होते है इन तीन रगो का अत्यधिक उपयोग इनके क्या क्या महत्व है जानिए

हमारे जीवन में रंगो का बड़ा महत्व है। यूँ तो सभी रंगो का खाश महत्व होता है। पर हमारे हिन्दू धर्म में पूजा के लिए इन तीन रंगो को सबसे अधिक महत्व दिया गया है। आइये जानते है इन तीन रंगो का क्या क्या महत्व है।

By प्रीति कुमारी 
Updated Date

1. पीला रंग :किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य या पूजा-पाठ में में पीले रंग का बहुत उपयोग किया जाता है। पूजा में हल्दी और चंतन का उपयोग किया जाता है जो कि पीले होते हैं। पीले रंग के वस्त्र भगवान विष्णु और उनके अवतारों को पहनाए जाते हैं। श्रीकृष्ण को पितांबर कहते हैं। पीले रंग के वस्त्रों को पितांबर कहते हैं। इसके अंतर्गत आप नारंगी और केसरी रंग को भी शामिल कर सकते हैं। इससे गुरु का बल बढ़ता है। गुरु हमारे भाग्य को जगाने वाला गृह है। किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य में पीले रंग का इस्तेमाल किया जाता है। पूजा-पाठ में पीला रंग शुभ माना जाता है। केसरिया या पीला रंग सूर्यदेव, मंगल और बृहस्पति जैसे ग्रहों का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह रोशनी को भी दर्शाता है। इस तरह पीला रंग बहुत कुछ कहता है। वैज्ञानिकों के अनुसार पीला रंग के उपयोग से हमारे रक्त में लाल और श्वेत कणिकाओं का विकास होता है। अर्थात रक्त में हिमोग्लोबिन बढ़ने लगता है।

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वैज्ञानिकों के अनुसार पीला रंग रक्त संचार बढ़ाता है। थकान दूर करता है। पीले रंग के संपर्क में रहने से रक्त कणों के निर्माण की प्रक्रिया बढ़ती है। सूजन, टॉन्सिल, मियादी बुखार, नाड़ी शूल, अपच, उल्टी, पीलिया, खूनी बवासीर, अनिद्रा और काली खांसी का नाश होता है। पीले रंग का संबंध जहां वैराग्य से है वीं यह पवित्रता और मित्रता से भी है। वैवाहिक जीवन में और बेडरूम में पीले रंग का प्रयोग सामान्य रूप से नहीं करना चाहिए। किचन में और बैठक रूप में इस रंग का प्रयोग करें। घर का फर्श पीले रंग कर रख सकते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार पीला रंग के उपयोग से हमारे रक्त में लाल और श्वेत कणिकाओं का विकास होता है। अर्थात रक्त में हिमोग्लोबिन बढ़ने लगता है। वैज्ञानिकों के अनुसार पीला रंग रक्त संचार बढ़ाता है। थकान दूर करता है। पीले रंग के संपर्क में रहने से रक्त कणों के निर्माण की प्रक्रिया बढ़ती है। सूजन, टॉन्सिल, मियादी बुखार, नाड़ी शूल, अपच, उल्टी, पीलिया, खूनी बवासीर, अनिद्रा और काली खांसी का नाश होता है। पीले रंग का संबंध जहां वैराग्य से है वीं यह पवित्रता और मित्रता से भी है। वैवाहिक जीवन में और बेडरूम में पीले रंग का प्रयोग सामान्य रूप से नहीं करना चाहिए। किचन में और बैठक रूप में इस रंग का प्रयोग करें। घर का फर्श पीले रंग कर रख सकते हैं।

2. लाल रंग : मां दुर्गा के मंदिरों में आपको लाल रंग की ही अधिकता दिखाई देगी। कुमकुम या कुंकु का उपयोग पूजा में किया जाता है जो कि लाल रहता है। लाल रंग का अबीर भी होता है। माता दुर्गा को लाल और हरे रंगी की चूढ़ियां अर्पित की जाती है। विवाह के समय विवाहित महिला लाल रंग की साड़ी और हरी चूड़ियां पहनती है। इसके अलावा विवाह के समय दूल्हा भी लाल या केसरी रंग की पगड़ी ही धारण करता है, जो उसके आने वाले जीवन की खुशहाली से जुड़ी है। मां लक्ष्मी को लाल रंग प्रिय है। मां लक्ष्मी लाल वस्त्र पहनती हैं और लाल रंग के कमल पर शोभायमान रहती हैं। पीले रंग के वस्त्रों को पितांबर कहते हैं। इसके अंतर्गत आप नारंगी और केसरी रंग को भी शामिल कर सकते हैं। इससे गुरु का बल बढ़ता है। गुरु हमारे भाग्य को जगाने वाला गृह है। किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य में पीले रंग का इस्तेमाल किया जाता है। पूजा-पाठ में पीला रंग शुभ माना जाता है। केसरिया या पीला रंग सूर्यदेव, मंगल और बृहस्पति जैसे ग्रहों का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह रोशनी को भी दर्शाता है। इस तरह पीला रंग बहुत कुछ कहता है।

3. सिन्दूरी रंग, केसरिया या भगवा रंग : रामभक्त हनुमान को लाल व सिन्दूरी रंग प्रिय हैं इसलिए भक्तगण उन्हें सिन्दूर अर्पित करते हैं। गणेशजी को भी सिन्दूर अर्पित किया जाता है। हनुमानजी और गणेशजी की प्रतिमा को सिंदूर से रंगा जाता है। भगवा या केसरिया सूर्योदय और सूर्यास्त का रंग भी है, मतलब हिन्दू की चिरंतन, सनातनी, पुनर्जन्म की धारणाओं को बताने वाला रंग है यह। केसरिया रंग त्याग, बलिदान, ज्ञान, शुद्धता एवं सेवा का प्रतीक है। शिवाजी की सेना का ध्वज, राम, कृष्ण और अर्जुन के रथों के ध्वज का रंग केसरिया ही था। केसरिया या भगवा रंग शौर्य, बलिदान और वीरता का प्रतीक भी है। सनातन धर्म में केसरिया रंग उन साधु-संन्यासियों द्वारा धारण किया जाता है, जो मुमुक्षु होकर मोक्ष के मार्ग पर चलने लिए कृतसंकल्प होते हैं। ऐसे संन्यासी खुद और अपने परिवारों के सदस्यों का पिंडदान करके सभी तरह की मोह-माया त्यागकर आश्रम में रहते हैं। भगवा वस्त्र को संयम, संकल्प और आत्मनियंत्रण का भी प्रतीक माना गया है।

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