नई दिल्ली: रामायण और महाभारत हिन्दू धर्म के सबसे महान ग्रंथ माने जाते है। ये दोनों महागाथाएं जितनी रोचक है उतनी ही रहस्य से भी भरी है। इनमे अलग अलग कथाओं और प्रकरणों को लेकर अलग अलग विद्वानों के अलग अलग मत है। इन सभी कहानियों में से कौनसी सत्य है और कौनसी मिथक ये तो पता लगाना लगभग असंभव ही है। आज हम आपको बताने जा रहे है ऐसी ही एक कहानी जिस पर विश्वास करना शायद मुश्किल हो.. ये शतप्रतिशत सत्य है या झूठ इसका निर्णय पाठक के विवेक पर है।
ये कहानी है जिससे पता चलता है कि लक्ष्मण की मृत्यु का कारण कोई और नहीं स्वयं भगवान राम थे। जैसा कि हम सबने पढ़ा और सुना है भगवान राम को लक्ष्मण सबसे प्रिय थे। राम के साथ 14 वर्षों के वनवास में भी लक्ष्मण अपनी इच्छा से अपने बड़े भाई की सेवा के लिए ही गए थे। राम और लक्ष्मण का स्नेह देखते ही बनता था लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि लक्ष्मण जैसे भाई को राम ने मृत्युदंड दे दिया?
लंका विजय के बाद जब भगवान राम ने अयोध्या का राज संभाल लिया था। एक बार स्वयं मृत्य के देवता यम श्री राम से किसी महत्वपूर्ण चर्चा हेतु मिलने आये। यम ने राम को कहा कि आप प्रतिज्ञा कीजिये की हमारी चर्चा के बीच कोई भी बीच में ना आये और ना ही कोई विघ्न पड़े। अगर कोई ऐसा करता है तो उसे मृत्युदंड मिले। राम ने यम के सामने प्रतिज्ञा की और वचन दिया कि ऐसा ही होगा और लक्ष्मण को द्वारपाल नियुक्त कर दिया।
भगवान राम और यम को चर्चा करते कुछ समय हुआ था तभी महर्षि दुर्वासा का आगमन हुआ और उन्होंने राम से मिलने की इच्छा जताई। लक्ष्मण ने विनम्रतापूर्वक कुछ देर इंतज़ार करने को कहा। ये सुनकर ऋषि क्रोधित हो गए और राम से तत्काल ना मिलने देने पर पूरी अयोध्या को श्राप देने की बात कहने लगे।
लक्ष्मण दोराहे में फँस गए कि करे तो क्या करे… अगर ऋषि की बात टाले तो पूरी अयोध्या ऋषि के कोप का शिकार होगी और अगर राम और यम की चर्चा में विघ्न डालते है तो मृत्युदंड मिलेगा कुछ क्षण सोचने के बाद लक्ष्मण ने निर्णय लिया कि वो ऋषि के आगमन की सुचना राम को देंगे। स्वयं के प्राण से महत्वपूर्ण पूरी अयोध्या की सलामती है। लक्ष्मण ने राम की चर्चा में विघ्न डालते हुए ऋषि के आने की सूचना दी।
राम चिंतित हो उठे क्योंकि प्रतिज्ञा के अनुसार उन्हें अब लक्ष्मण को मृत्युदंड देना था। राम अपने प्रिय भाई को मृत्युदंड देने की बात सोच भी नहीं सकते थे, लक्ष्मण की मृत्यु का कारण बन नहीं सकते थे। यम के सामने की गयी प्रतिज्ञा तोड़ भी नहीं सकते थे। जब ऋषि दुर्वासा को ये पता चला तो उन्होंने सुझाव दिया कि राम यदि लक्ष्मण का त्याग कर दे तो वो मृत्यु सामान ही होगा। जब लक्ष्मण को ये पता चला तो उन्होंने भगवान राम से कहा कि राम के द्वारा त्याग करने से अच्छा तो मृत्यु का वरण करना ही है। यह कहकर लक्ष्मण ने जलसमाधि लेकर अपने प्राण त्याग दिया।