श्रीनगर। जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35ए हटाये जानें के बाद नेशनल कांफ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने इस मामले को लेकर विवादित बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में दोबारा अनुच्छेद 370 की बहाली में चीन से मदद मिल सकती है। इसके साथ ही उन्होंने मोदी सरकार के इस कदम का समर्थन करने वालों को गद्दार बताया था।
इस बात से नाराज रजत शर्मा और नेह श्रीवास्तव नामक दो व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 के खिलाफ बयान देने पर फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ देशद्रोह की कार्यवाही करने के आदेश देने की मांग की गई थी। याचिका में यह भी मांग की गई थी कि नेता की संसद की सदस्यता को अमान्य घोषित किया जाए और उन पर आईपीसी की धारा 124-ए के तहत देशद्रोह का आरोप लगाया जाए।
हालांकि बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ आर्टिकल 370 को लेकर उनकी टिप्पणी के लिए कार्रवाई की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। देशद्रोह का मुकदमा चलाए जाने की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार से अलग विचार रखना कोई देशद्रोह नहीं है। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और हेमंत गुप्ता की पीठ ने यह फैसला दिया। फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए पीठ ने कहा कि सरकार की राय से अलग विचारों की अभिव्यक्ति को देशद्रोही नहीं कहा जा सकता है। पीठ ने याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।