अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने स्टडी बेहद डराने वाला दावा किया है। डरना भी चाहिए क्योंकि स्टडी तो अमेरिका की है, लेकिन उसका असर पूरी दुनिया पर देखने को मिलेगा। स्टडी में चेतावनी दी गई है कि साल 2050 तक अमेरिका के लगभग सभी तट बढ़ते समुद्री जलस्तर से डूब जाएंगे। यह भी बताया गया है कि कौन सा तट कितना डूबेगा? अब अगर अमेरिका के तट डूबेंगे तो दुनिया के कई देशों की हालत खराब होगी।
नई दिल्ली। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने स्टडी बेहद डराने वाला दावा किया है। डरना भी चाहिए क्योंकि स्टडी तो अमेरिका की है, लेकिन उसका असर पूरी दुनिया पर देखने को मिलेगा। स्टडी में चेतावनी (NASA Warning) दी गई है कि साल 2050 तक अमेरिका के लगभग सभी तट बढ़ते समुद्री जलस्तर (Sea Level Rising) से डूब जाएंगे। यह भी बताया गया है कि कौन सा तट कितना डूबेगा? अब अगर अमेरिका के तट डूबेंगे तो दुनिया के कई देशों की हालत खराब होगी।
सिर्फ तटों के डूबने का खतरा नहीं है, बल्कि हर छोटे-मोटे तूफान में समुद्री बाढ़ आने का खतरा बढ़ जाएगा। नासा ने यह स्टडी तीन दशकों के सैटेलाइट डेटा का विश्लेषण करके किया है। इसके बाद नासा के वैज्ञानिकों ने बताया कि अमेरिका के तट एक फीट (12 इंच) तक डूब जाएंगे। यानी अभी के जलस्तर से एक फीट ज्यादा। सबसे ज्यादा प्रभावित होगा खाड़ी का तट (Gulf Coast) और दक्षिणपूर्व (Southeast Coast) के तट। यानी न्यूयॉर्क, सैन फ्रांसिस्को, लॉस एंजेल्स और वर्जीनिया जैसे कई तटीय राज्य मुसीबत में आएंगे।
समुद्री जलस्तर बढ़ने के साथ-साथ सबसे बड़ी दिक्कत जो आएगी वो होगी तूफानों की वजह से आने वाली समुद्री बाढ़। यह स्टडी हाल ही में कम्यूनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरमेंट जर्नल में प्रकाशित हुई है। नासा की इस स्टडी में कई साइंटिफिक एजेंसियों की रिसर्च रिपोर्ट का एनालिसिस भी किया गया है। जिसे सी-लेवल राइज टेक्निकल रिपोर्ट कहते हैं। इनमें बताया गया है कि अगले 30 सालों में अमेरिका के तटों पर पानी ही पानी होगा।
अमेरिका के पूर्वी तट (East Coast) पर समुद्री जलस्तर 10 से 14 इंच बढ़ जाएगा। खाड़ी के तट (Gulf Coast) पर 14 से 18 इंच बढ़ेगा। पश्चिमी तट (West Coast) पर 4 से 8 इंच बढ़ जाएगा। इस स्टडी को करने के लिए जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों की भी मदद ली गई है। इन लोगों ने सैटेलाइट डेटा के आधार पर मल्टी एजेंसी स्टडी को मान्यता दी है। उनके डेटा को पुख्ता किया है। इनके सैटेलाइट्स को धरती के आधुनिक जानकारी है।
यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के क्लाइमेट साइंटिस्ट जोनाथन ओवरपेक ने कहा कि नासा ने अपने सैटेलाइट अल्टीमीटर से समुद्री सतह को नापा। उसके बाद NOAA के टाइड गॉज रिकॉर्ड्स से मिलाया। नोआ यह डेटा पिछले 100 सालों से जमा कर रहा है। इसके बाद नासा यह बात स्पष्ट तौर पर समझ पाया कि उनकी रीडिंग्स गलत नहीं है। ग्राउंड लेवल पर भी डेटा सही है। यह सबसे बड़ी चिंता की बात है कि डेटा सही हैं। यानी अमेरिकी तटों का भविष्य खतरे में है।
जोनाथन ने बताया कि नासा की स्टडी सरप्राइज नहीं कर रही है। डरा रही है। हमें पता है कि समुद्री जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है। उसकी वजह भी पता है। जितना ज्यादा ध्रुवीय बर्फ पिघलेगी, उतना ज्यादा समुद्री जलस्तर बढ़ेगा। ध्रुवीय बर्फ ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से पिघल रही है। यानी धरती और समुद्री सतह का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। साथ ही हवा भी गर्म होती जा रही है. इसलिए जरूरी है कि ग्लोबल वॉर्मिंग को संभाला जाए या कम किया जाए।
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के क्लाइमेट साइंटिस्ट डेविड हॉलैंड कहते हैं कि नासा के डेटा सटीक हैं। गल्फ कोस्ट पर सबसे ज्यादा असर होने वाला है। जो भविष्यवाणी की गई है उसके हिसाब से यहां पर एक फुट तक पानी बढ़ जाएगा। यानी भविष्य में आने वाले हरिकेन और तूफानों-चक्रवातों के समय आपदा ज्यादा मुसीबत लेकर आएंगे। यानी खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। अमेरिकी तटों को अल-नीनो और ला-नीना के प्रभावों का सामना 2030 के मध्य तक ज्यादा करना होगा।
18.6 साल बाद चंद्रमा की कक्षा में होने वाले बदलावों, अल-नीनो और ला-नीना के प्रभावों और समुद्री जलस्तर बढ़ने की वजह से आने वाले समुद्री बाढ़ से अमेरिका के कई तटीय राज्य जूझने वाले हैं। यानी अगले 18.6 सालों में तटों की हालत खराब होने वाली है। 2050 तक तो बहुत बुरी स्थिति हो जाएगी। तटों पर समुद्र आगे आ जाएगा। अल-नीनो की वजह से समुद्री सतह गर्म होती है। जिससे तूफानों की आने की मात्रा बढ़ जाएगी।
इंग्लैंड स्थित टिंडल सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज रिसर्च के डायरेक्टर रॉबर्ट निकोल्स ने कहा कि हम इस स्टडी को दरकिनार नहीं कर सकते। हमें तटों पर रहने वाले लोगों को समझाना होगा। साथ ही हर देश की सरकार और प्रशासन को. ताकि प्रदूषण स्तर कम किया जा सके। समुद्री जलस्तर अगर बढ़ता है तो उससे मौसम में बदलाव होगा। ये बदलाव खतरनाक हो सकता है। ये बात सिर्फ अमेरिका की नहीं है। बल्कि इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा।
इंसानों को यह समझना होगा कि उनकी वजह से शुरु हुआ क्लाइमेट चेंज (Climate Change) , उन्हें कई नए खतरनाक नजारे दिखाने वाला है। इसलिए जरूरी है कि ये बदलते हुए जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के साथ सामजंस्य बिठाकर चले, क्योंकि ये इंसानों के बस में नहीं कि इस बदलाव को सुधार सकें। इससे आने वाली पीढ़ियों को दिक्कत का सामना करना ही पड़ेगा।