द्वारका शारदा और ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ पीठ (Dwarka Sharda and Jyotirmath Badrinath Peeth) के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Swami Swaroopanand Saraswati) का बीते रविवार को 99 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया था। उनके अंतिम दर्शन के लिए मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर आश्रम में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी है।
नई दिल्ली। द्वारका शारदा और ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ पीठ (Dwarka Sharda and Jyotirmath Badrinath Peeth) के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Swami Swaroopanand Saraswati) का बीते रविवार को 99 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया था। उनके अंतिम दर्शन के लिए मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर आश्रम में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी है। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ समेत कई राजनेता उनके अंतिम दर्शन करने पहुंचे थे। इसके साथ ही स्वामी स्वरूपानंद के उत्तराधिकारियों का भी ऐलान कर दिया गया है। उनके दो उत्तराधिकारी होंगे जो अलग-अलग पीठ के शंकराचार्य होंगे।
रिपोर्ट्स के मुताबिक स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद (Swami Avimukteshwarananda) जी को ज्योतिषपीठ बद्रीनाथ (Jyotishpeeth Badrinath) और स्वामी सदानंद (Swami Sadananda)जी को द्वारका शारदा पीठ (Dwarka Sharda Peeth) का प्रमुख बनाया गया है। जानकारी के मुताबिक स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Swami Swaroopanand Saraswati) के पार्थिव शरीर के सामने ही उनके निजी सचिव रहे सुबोधानंद महाराज (Subodhanand Maharaj) ने इन नामों की घोषणा की। बता दें कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद (Swami Avimukteshwarananda) को नरसिंहपुर के परमहंसी गंगा आश्रम में भू-समाधि (Bhoomi Samadhi at Paramhansi Ganga Ashram) दी जाएगी।
डॉक्टरों के मुताबिक स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Swami Swaroopanand Saraswati) का निधन माइनर हार्ट अटैक की वजह से हुआ है। वह पिछले कई महीनों से बीमार चल रहे थे। जिन दोनों संतों को स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Swami Swaroopanand Saraswati) का उत्तराधिकारी बनाया गया है वे दोनों ही दंडी स्वामी की पदवी प्राप्त कर चुके हैं।
बता दें कि स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Swami Swaroopanand Saraswati) भी शंकराचार्य बनने से पहले दंडी स्वामी बने थे। उन्होंने शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती (Shankaracharya Swami Brahmananda Saraswati) से दंड सन्यास की दीक्षा (Initiation of Penance) ली थी। इसके बाद 1981 में उन्हें शंकराचार्य की उपाधि मिली। उत्तराखंड के ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य की पदवी लिए उन्हें कानूनी लड़ाई भी लड़नी पड़ी। बता दें कि वह 1952 से 2020 तक लगातार प्रयागराज के कुंभ में जाते थे। कई बार वह तथाकथित फर्जी शंकराचार्यों का विरोध भी कर चुके हैं।