काव्य गोष्ठी में लगभग दर्जन भर से अधिक स्थानीय कवियों ने अपना मनमोहक काव्य पाठ प्रस्तुत किया। दिवस प्रताप सिंह ने पढ़ा पहले कै संसार चला गा बुढ़वन के दरबार चला गा। पप्पू सिंह कसक ने पढ़ा कि बात-बात पर तकरार होइगै, पइसा के ताईं मार होइगै। राम वदन शुक्ल पथिक ने पढ़ा यहि भारत कै पहचान ई हिंदी।
अमेठी। अवधी साहित्य संस्थान ने कवि गोष्ठी का आयोजन किया, जिसमें भाषाई समन्वय में अवधी की भूमिका सर्वोपरि पर जोर दिया। रविवार को डाक बंगला के सभागार में अवधी साहित्य संस्थान अमेठी की ओर से ‘हिन्दी के सम्वर्द्धन में अवधी की भूमिका’ विषय पर आधारित काव्य गोष्ठी का शुभारंभ मां सरस्वती जी की वन्दना से कवि अनिरुद्ध मिश्र द्वारा हुआ। इस अवसर पर अवधी साहित्य संस्थान के अध्यक्ष डॉ अर्जुन पाण्डेय ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि हम सबको अवधी पर गर्व होना चाहिए। अवधी की पहचान श्रीरामचरितमानस एवं पद्मावत से है। भाषायी समन्वय में अवधी की भूमिका सर्वोपरि है।
काव्य गोष्ठी में लगभग दर्जन भर से अधिक स्थानीय कवियों ने अपना मनमोहक काव्य पाठ प्रस्तुत किया। दिवस प्रताप सिंह ने पढ़ा पहले कै संसार चला गा बुढ़वन के दरबार चला गा। पप्पू सिंह कसक ने पढ़ा कि बात-बात पर तकरार होइगै, पइसा के ताईं मार होइगै। राम वदन शुक्ल पथिक ने पढ़ा यहि भारत कै पहचान ई हिंदी। रामेश्वर सिंह निराश ने पढ़ा कजरी कहरवा कै कहां गवा राग हो, राजेन्द्र शुक्ल अमरेश ने पढ़ा जेहि घर सासू अहैं जवान कसक सुख पाते ये पतोहिया, सुरेश शुक्ल नवीन ने पढ़ा-हाथ उनके जले न जले बस्तियां रोज वो जलाते हैं।
शब्बीर अहमद सूरी ने पढ़ा- प्रेम प्रणय का शब्द नहीं यह मनोभाव का अर्पण है । राम कुमारी ने पढ़ा – धन्य है ये धरा धन्य है ये ज़मीं। आशुतोष गुप्त ने पढ़ा उन्मुक्त रूप से सोच सके, कुछ कर सके कुछ बढ़ सके। युवा ओज कवि अभिजीत त्रिपाठी ने पढ़ा मत सोचो तुम महलों में मुझको लाकर रखोगे, मैं खुद्दारी का पौधा हूं बस उपवन में खिलता हूं। श्रीनाथ शुक्ल ने पढ़ा छोड़ हमहू शहरिया अउबै किसनिया करबै गोरिया। इस अवसर पर अभिजीत त्रिपाठी को तूलसी अवध सम्मान से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन अनिरुद्ध मिश्र ने किया। इस अवसर पर हरिशंकर मिश्र, पं विजय कुमार मिश्र, सत्येन्द्र प्रकाश शुक्ल, डॉ अभिमन्यु कुमार पाण्डेय, कैलाश नाथ शर्मा एवं जगन्निवास मिश्र आदि भारी भीड साहित्य प्रेमियों की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही।