यूपी की राजधानी लखनऊ के भटगांव में डिफेंस कॉरिडोर (Defense Corridor) के लिए घपलेबाजों ने वर्ष 2021 में सरकारी जमीन तक निजी लोगों के नाम दर्ज कर बड़ा खेल किया गया। बता दें कि मुआवजा हड़पने के खेल में कंप्यूट्रीकृत राजस्व रिकॉर्ड तक को दरकिनार (Computerized Revenue Records were Bypassed) कर दिया।
लखनऊ। यूपी की राजधानी लखनऊ के भटगांव में डिफेंस कॉरिडोर (Defense Corridor) के लिए घपलेबाजों ने वर्ष 2021 में सरकारी जमीन तक निजी लोगों के नाम दर्ज कर बड़ा खेल किया गया। बता दें कि मुआवजा हड़पने के खेल में कंप्यूट्रीकृत राजस्व रिकॉर्ड तक को दरकिनार (Computerized Revenue Records were Bypassed) कर दिया। जानकार बताते है कि अगर खरीदारों की भी जांच हो तो पूरी साजिश सामने आ सकती है। एक ही खरीदार ने कई-कई फर्जी आवंटियों से जमीन अपने नाम कराई है। भटगांव जमीन अधिग्रहण घोटाले (Bhatgaon Land Acquisition Scam) में जिला व तहसील प्रशासन और अन्य संबंधित अधिकारियों की मिलीभगत साफ नजर आ रही है।
बतातें चलें कि डिफेंस कॉरिडोर (Defense Corridor) की सीमा के भीतर कुल नौ नंबरों (गाटा संख्या) और उस सीमा के बाहर 31 नंबरों की जमीन ऐसी थी, जो श्रेणी-5 (3 क) के अंतर्गत कृषि योग्य बंजर-इमारती लकड़ी के वन के रूप में दर्ज है। इस भूमि को सार्वजनिक उपयोग की सुरक्षित श्रेणी में रखा जाता है। इसे किसी निजी व्यक्ति के नाम नहीं किया जा सकता। सरोजनीनगर तहसील के अधिकारियों और कर्मचारियों ने संक्रमणीय व असंक्रमणीय भूमिधर घोषित करने से पूर्व इन तथ्यों को एकदम नजरअंदाज कर दिया।
5.20 लाख रुपये में जमीन राजू को बेचा
इतना ही नहीं, डिफेंस कॉरिडोर (Defense Corridor) के लिए जमीन खरीदने वाली संस्था यूपीडा (UPDA) को जिस विक्रेता ने जमीन बेची, बिक्री की तिथि को उसका नाम भी खतौनी में दर्ज नहीं था। ऐसे कई मामले सामने आए हैं। विजय कुमार को 14 जून 2021 को संक्रमणीय भूमिधर घोषित किया गया। उन्होंने इस जमीन को 5.20 लाख रुपये में राजू को बेचा।
राजू ने वरुण कुमार मिश्रा और उनकी पत्नी सरिता सिंह को बेचा, जिसके एवज में 14.50 लाख रुपये प्राप्त किया। बाद में सरिता और वरुण ने इस जमीन को 13 जुलाई को यूपीडा (UPDA) को 57.60 लाख रुपये में बेच दिया। इसी तरह से वरुण कुमार मिश्रा ने अन्य कथित पट्टेदार राम आसरे की जमीन का अनुबंध किया। हालांकि, यह बाद में निरस्त कर दिया गया। फिर इसे बंका ने खरीदा, जिसने यूपीडा को 57.60 लाख रुपये में बेचा।
ऐसे हुआ है खेल
रिकॉर्ड बताता है कि 22 जून 1984 की पट्टा पत्रावली में तत्कालीन ग्राम प्रधान बाबू लाल और इंचार्ज लेखपाल भगवानदीन ने 128 व्यक्तियों की पात्रता सूची तैयार की। इनमें से 15 भूमिहीन अनुसूचित जाति के खेतिहर मजदूरों का आवंटन तत्कालीन परगनाधिकारी (सहायक कलेक्टर) ने स्वीकार किया। पहली सूची के ही अधिकांश व्यक्तियों का नाम 28 जनवरी 1985 को तैयार एक अन्य पट्टा आवंटन पत्रावली में प्रस्तुत किया गया।
वर्ष 1985 की इस पत्रावली पर न तो तत्कालीन तहसीलदार की संस्तुति है और न ही एसडीएम की। जहां एसडीएम के हस्ताक्षर हैं, वे भी अन्य फाइलों में उनके हस्ताक्षर से एकदम भिन्न हैं। यानी, 1985 की पट्टा आवंटन पत्रावली ही फर्जी है। इसी पत्रावली के आधार पर वर्ष 2021 में राजस्व व अन्य संबंधित विभागों के अधिकारियों ने बड़ा खेल किया। इस जमीन घोटाले में बीजेपी के कई बड़े नेता शामिल हैं। इन नामों का hindi.pardaphash.com जल्द खुलासा करेगा।