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केंद्र ने समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने का सुप्रीम कोर्ट में किया विरोध, दाखिल किया हलफनामा

देश में समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को मंजूरी की मांग वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार (Central Government) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अपना जवाब दाखिल कर दिया है। केंद्र सरकार ने ऐसी सभी 15 याचिकाओं का विरोध किया, जिनमें समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage)  को कानूनी मान्यता देने की मांग की गई है।

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। देश में समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को मंजूरी की मांग वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार (Central Government) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अपना जवाब दाखिल कर दिया है। केंद्र सरकार ने ऐसी सभी 15 याचिकाओं का विरोध किया, जिनमें समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage)  को कानूनी मान्यता देने की मांग की गई है। केंद्र सरकार (Central Government)  ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  में पेश किए गए अपने हलफनामे में कहा कि समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage)  को मंजूरी नहीं दी जा सकती है। ये एक परिवार की भारतीय अवधारणा के खिलाफ है। भारत में फेमिली की अवधारणा पति-पत्नी और उनसे पैदा हुए बच्चों से होती है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  से इन सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग की।

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इस मामले की सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  सोमवार को सुनवाई करेगा। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  को बताया कि समलैंगिक संबंध और विषम लैंगिक (Heterosexual) संबंध स्पष्ट रूप से अलग-अलग वर्ग हैं, जिनको किसी भी सूरत में एक समान नहीं माना जा सकता है। केंद्र सरकार (Central Government) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  को बताया कि समान-लिंग वाले लोगों के जीवन साथी के तौर पर रहने को भले ही अब डिक्रिमिनलाइज (Decriminaliz) कर दिया गया है। इसके बावजूद पति, पत्नी और बच्चों की भारतीय परिवार की इकाई की अवधारणा के साथ इसकी तुलना नहीं हो सकती है।

केंद्र सरकार (Central Government)  ने कहा कि आईपीसी की धारा 377 का डिक्रिमिनलाइजेशन (Decriminalization) किया जाना समान-लिंग विवाह (Same Sex Marriage)  के लिए मान्यता हासिल करने के दावे को जन्म नहीं दे सकता है। केंद्र ने कहा कि प्रकृति में विषमलैंगिक (Heterosexual) तक सीमित विवाह की वैधानिक मान्यता पूरे इतिहास में एक आदर्श है और राज्य के अस्तित्व और निरंतरता दोनों के लिए बुनियादी पहलू है। केंद्र सरकार के जवाबी हलफनामे में कहा गया है कि इसलिए इसके सामाजिक मूल्य को ध्यान में रखते हुए विवाह के अन्य रूपों का बहिष्कार करना और केवल विषम लैंगिक विवाह (Heterosexual Marriage)को मान्यता देना राज्य का एक जरूरी हित है।

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