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‘Rewari Culture’ पर कोर्ट की ‘सुप्रीम’ टिप्प्णी, कहा-राजनीतिक दलों को वादा करने से न रोकें, इस मामले में बहस की जरूरत

रेवड़ी कल्चर (Rewari Culture) पर चल रही राजनीतिक बहस के बीच बुधवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) ने अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों को अपने मतदाताओं से वायदा करने से नहीं रोका जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सवाल इस बात का है कि सरकारी धन का किस तरह से इस्तेमाल किया जाए?

By संतोष सिंह 
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नई दिल्ली। रेवड़ी कल्चर (Rewari Culture) पर चल रही राजनीतिक बहस के बीच बुधवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) ने अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों को अपने मतदाताओं से वायदा करने से नहीं रोका जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सवाल इस बात का है कि सरकारी धन का किस तरह से इस्तेमाल किया जाए?

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इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) ने इस मामले की सुनवाई सोमवार तक के लिए टाल दी है। कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों से अपनी लिखित राय शनिवार तक जमा करने को कहा है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) में याचिका दायर कर चुनाव में मुफ्त की योजनाओं की घोषणा पर रोक की मांग की गई थी। कोर्ट ने बुधवार को इस मसले पर सुनवाई की है।

सुनवाई के दौरान सीजेआई एनवी रमना (CJI NV Ramana) ने कहा कि ‘हमारे पास आए तमाम सुझावों में से एक ये भी है कि राजनीतिक दलों को अपने मतदाताओं से वादा करने से नहीं रोका जाना चाहिए। अब सवाल ये है कि किसे मुफ्तखोरी कहा जाए? क्या मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं, मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी को मुफ्तखोरी कहा जा सकता है। मनरेगा जैसी योजनाए भी हैं, जो सम्मानपूर्वक जीवन का वादा करती है। मुझे नहीं लगता कि राजनीतिक वायदे ही चुनाव जीतने की एकमात्र कसौटी हैं। वादे करने के बाद भी पार्टियां हार जाती है। इस मामले में बहस की जरूरत है।’

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court)  में मुफ्त वादे करने वाली राजनीतिक पार्टियों को प्रतिबंधित करने के लिए अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दायर की है। पिछली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने मुफ्त घोषणा करने वाली पार्टियों की मान्यता रद्द करने की दलील दी थी। इस पर अदालत ने कहा था कि यह हमारा काम नहीं है। इस पर कानून बनाना है तो केंद्र सरकार बनाए।

इसके साथ ही तमिलनाडु (Tamil Nadu) के सीएम एमके स्टालिन (CM MK Stalin) की पार्टी डीएमके ने भी इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। डीएमके ने अपनी याचिका में कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 38 के तहत आर्थिक न्याय को सुनिश्चित करने और सामाजिक असमानता को खत्म करने के लिए मुफ्त सेवाएं शुरू की गई हैं। इसे किसी भी हालत में मुफ्त रेवड़ियां नहीं कहा जा सकता है।

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