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जलजीवन मिशन में बगैर सॉइल टेस्ट धड़ल्ले से बन रही टंकियां, बिन बुलाई मौत हो रही साबित,आखिर जिम्मेदार कौन?

यूपी में जलजीवन मिशन के तहत हर घर नल-हर घर जल परियोजना जनता के लिए वरदान कम अभिशाप ज्यादा बनती जा रही है। केंद्र सरकार की ये महत्वाकांक्षी योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती जा रही है। सरकार के दावों के उलट ये योजना जनता को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने अभी तक सफल नहीं होती दिख रही है।

By टीम पर्दाफाश 
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लखनऊ। यूपी में जलजीवन मिशन के तहत हर घर नल-हर घर जल परियोजना जनता के लिए वरदान कम अभिशाप ज्यादा बनती जा रही है। केंद्र सरकार की ये महत्वाकांक्षी योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती जा रही है। सरकार के दावों के उलट ये योजना जनता को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने अभी तक सफल नहीं होती दिख रही है। उल्टे यूपी में जल जीवन मिशन के इंजीनियर नियम-कायदे ताक पर रख बगैर सॉइल टेस्ट के धड़ल्ले से पानी की टंकियों को ढ़ांचा खड़ते करते जा रहे हैं।

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आए दिन योजना की खामियों की खबरें सामने आती रहती हैं। इस लापरवाही की भेंट प्रदेश के बेकसूर चढ़ रहे हैं। हाल ही मथुरा जिले में एक टंकी के धराशायी होने से 3 बेकसूर लोगों की मौत हो गई। मथुरा में टंकी गिरने के बाद इलाके पानी का सैलाब उमड़ पड़ा। हादसे में मोहन गोस्वामी की बेटी की मौत हो गई थी। मोहन गोस्वामी ने बताया कि बेटी घर के बाहर चाय पी रही थी। वह मौके पर मर गई। दूसरी लापरवाही सीतापुर के चितहला गांव में टेस्टिंग के दौरान ही टंकी धराशायी हो गई।

तीन करोड़ 75 लाख रुपये की लागत से तैयार टंकी ट्रायल के दौरान ही जमींदोज हो गई

यूपी के सीतापुर में जल जीवन मिशन के तहत विकासखंड महोली के गांव चितहला में पानी की टंकी के निर्माण में तीन करोड़ 75 लाख रुपये की लागत आई थी। ट्रायल के दौरान ही पानी की टंकी भरभराकर जमींदोज हो गई। पानी की टंकी के साथ ही बाउंड्री वॉल भी गिर गई। टीम ने प्रथम दृष्टया माना कि टंकी का निर्माण की गुणवत्ता ठीक नहीं थी। जांच टीम ने प्रथम दृष्टया माना कि टंकी का निर्माण की गुणवत्ता ठीक नहीं थी। टीम ने मलबे से सीमेंट और ईंट के नमूने लिए और कहा कि इन्हें इंजीनियरिंग कॉलेज भेजेंगे। अफसरों ने कहा कि जांच रिपोर्ट आने के बाद हादसे की असली वजह सामने आएगी। गांव वाले कार्यदायी संस्था पर एक छोटे डीलर से घटिया काम कराने का आरोप लगा रहे हैं। उधर, मामले को दबाने के लिए रात में ही मौके से पूरा मलबा हटा दिया गया।

जलजीवन मिशन में जिस कंपनी को ठेका मिला है वह सीधे नहीं कर रही थी काम

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मथुरा और सीतापुर की टंकियों के धराशायी होने में जो प्रमुख खामी उजागर हुई है। उसमें यह कि किसी भी टंकी की मिट्‌टी की जांच नहीं कराई गई। एक और बात सामने आई है कि जलजीवन मिशन में जिस कंपनी को ठेका मिला है वह सीधे काम नहीं कर रही थी। उसने छोटे लोगों (पेटी कांट्रैक्टर) को काम दिया। ऊपर से लेकर नीचे तक कमीशन चलता है। सीतापुर जिले के चितहला गांव के प्रधान सुरेंद्र कुमार मिश्रा बताया कि ठेकेदार को हमने बताया था कि कॉलम टेढ़ा जा रहा है, लेकिन ठेकेदार ने मेरी बात को अनसुनी कर दिया। विभागीय जेई ने भी टोका, लेकिन कंपनी के प्रोजेक्ट मैनेजर ने कहा कि सब सही है। नतीजा टंकी गिर गई। टंकी पर तैनात चौकीदार विनय कुमार ने बताया कि टंकी के कॉलम (स्ट्रक्चर) में गड़बड़ी थी। उन्होंने बताया कि जेई ने ठेकेदार से कहा भी था, लेकिन वह नहीं माना।

प्रदेश के अधिकतर जिलों में कंपनी ने रिबाउंड हैमर टेस्ट भी नहीं कराया जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि मिट्‌टी की जांच सहीं नहीं हुई थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन करने वाली कंपनी सिंसेस टेक लिमिटेड ने अपनी रिपोर्ट में सॉइल टेस्ट की अनदेखी का खुलासा किया। इसमें बताया गया कि कुछ जगहों पर मिट्‌टी की जांच स्टैंडर्ड यानी मानकों पर नहीं है।

एनसीसी कंपनी को ड्राइंग और डिजाइन उपलब्ध कराने को कहा था, लेकिन अभी तक उपलब्ध नहीं कराई

23 सितंबर, 2024 को एग्जीक्यूटिव इंजीनियर राजीव कुमार ने एनसीसी कंपनी को फिर पत्र लिखकर मिट्‌टी की जांच के रिपोर्ट के आधार पर ड्राइंग और डिजाइन उपलब्ध कराने को कहा था, लेकिन अभी तक उपलब्ध नहीं कराई। ऐसे में टंकियों का काम तत्काल बंद कर दिया जाए। 555 टंकियों की मिट्‌टी की जांच रिपोर्ट दो दिन के अंदर उपलब्ध कराएं। कंपनी के भुगतान पर रोक लगा दी। ऐसा ही पत्र असिस्टेंट इंजीनियर धर्मेंद्र यादव ने एलएंडटी कंस्ट्रक्शन को 25 सितंबर 2024 को लिखा। इस लेटर में लिखा गया है कि आपके द्वारा 535 पेयजल योजनाओं का डीपीआर तैयार की गई थी, लेकिन सिर्फ 122 योजनाओं की ही मिट्‌टी की जांच ड्राइंग और डिजाइन उपलब्ध कराई गई है।

अब सवाल उठता है क्या बिना टेस्ट कराए ही टंकियों का निर्माण शुरू कर दिया गया?

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अब सवाल उठता है क्या बिना टेस्ट कराए ही टंकियों का निर्माण शुरू कर दिया गया? हादसे के बाद अफसर, इंजीनियर्स के लेटर और थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन (TPI) कंपनी सिंसेस टेक लिमिटेड की रिपोर्ट बताती है कि सीतापुर में 1320 टंकियां बन रही हैं। इनमें से 1090 टंकियों में से अधिकतर का साॅइल टेस्ट और रिबाउंड हैमर टेस्ट कराया ही नहीं गया। टंकियों की ऊंचाई 30 से 40 फीट है। 500 से लेकर 1200 किलोलीटर तक कैपेसिटी है। जिस तरह यह टंकी बन रही है, उससे नहीं लगता कि यह ज्यादा दिनों तक चलने वाली है।

 

सीतापुर में टंकी बना रही एनसीसी कंपनी और एलएंडटी कंस्ट्रक्शन का पक्ष जानने के लिए हमने उनके वेबसाइट पर दिए गए नंबरों पर फोन किया तो वे नहीं उठे। वहीं, ईमेल करने पर मैसेज आ रहा है कि रिसीवर नाट फाउंड। ये हाल सिर्फ 2 जिलों का है, जबकि यूपी के 73 जिलों में पानी की टंकियां बिना सॉइल टेस्ट की बनाई जा रही हैं। यह आगे चलकर बिन बुलाई मौत न साबित हो जाएं।

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