व्यास पीठ पर बैठे प्रख्यात कथा वाचक रामभद्राचार्य (Story Teller Rambhadracharya) उत्तर प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना (Uttar Pradesh Assembly Speaker Satish Mahana) से अपने चेले को सरकारी नौकरी देने की सिफारिश करते नजर आए हैं, उनका यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है।
लखनऊ। व्यास पीठ पर बैठे प्रख्यात कथा वाचक रामभद्राचार्य (Story Teller Rambhadracharya) उत्तर प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना (Uttar Pradesh Assembly Speaker Satish Mahana) से अपने चेले को सरकारी नौकरी देने की सिफारिश करते नजर आए हैं, उनका यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है।
Video-यूपी में योग्यता नहीं बाबा कृपा पर मिलेगी नौकरी,राम भद्राचार्य ने जब मंच पर ही कर दी समीक्षा अधिकारी बनाने की सिफारिश! pic.twitter.com/yDQ9DItd2n
— santosh singh (@SantoshGaharwar) November 16, 2024
रामभद्राचार्य व्यासपीठ पर बैठे हुए हैं और उत्तर प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना (Uttar Pradesh Assembly Speaker Satish Mahana) उनके सामने प्रणाम की मुद्रा में खड़े हुए हैं। वहीं रामभद्राचार्य विधानसभा अध्यक्ष से अपने एक चेले शाश्वत शर्मा को विधानसभा में समीक्षा अधिकारी की नौकरी पर लगाए जाने की सिफारिश कर रहे हैं। रामभद्राचार्य का वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है और इस पर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं भी आ रही है।
यूपी विधानसभा और विधान परिषद में 186 प्रशासनिक पदों पर हर 5 में से 1 VVIP या नेता के रिश्तेदार की नियुक्ति
केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकार देश में प्रतिवर्ष दो करोड़ रोजगार देने वादाकर सत्ता पाई थी, लेकिन बीते 10 वर्षों बाद वह वादा जुमला ही साबित हुआ। इसी बीच यूपी में योगी सरकार (Yogi Government) के तरफ से उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद (UP Legislative Assembly and Legislative Council) में 186 प्रशासनिक पदों पर की गई नियुक्तियों ने एक बड़ा विवाद सामने आया है। इसको लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने यहां तक कह दिया कि ये एक चौंकाने वाला घोटाला है। इसकी सीबीआई (CBI) जांच होनी चाहिए। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए इसको लेकर सरकार में ईमानदारी की कमी और भाई-भतीजावाद के गंभीर आरोप लगाए हैं।
बता दें कि यूपी विधानसभा और विधान परिषद (UP Legislative Assembly and Legislative Council) में प्रशासनिक पदों पर होने वाली नियुक्तियों के लिए साल 2020-21 में दो राउंड की परीक्षा हुई थी। इस परीक्षा के लिए 2.5 लाख लोगों ने आवेदन किया था। हैरानी की बात यह है कि हर 5 में से 1 नियुक्ति उन कैंडिडेट्स को मिली जो कि वीवीआईपी अधिकारी या नेता के रिश्तेदार हैं। बता दें कि इंडियन एक्सप्रेस (Indian Express) की एक इनवेस्टिगेटिव रिपोर्ट बताती है कि ये वही अधिकारी हैं, जिनकी निगरानी में परीक्षा आयोजित की गई थी।
VVIP के रिश्तेदारों को मिली नियुक्तियां
परीक्षा में सफल होने वाले कैंडिडेट्स की बात करें तो तत्कालीन विधानसभा के अध्यक्ष के पीआरओ और उनके भाई को मौका मिला। एक कैंडिडेट भतीजा, एक विधानसभा परिषद सचिवालय प्रभारी का बेटा, विधानसभा सचिवालय प्रभारी के चार रिश्तेदार, एक संसदीय कार्य विभाग का बेटा और बेटी, एक उप लोकायुक्त के बेटे, दो मुख्यमंत्रियों के पूर्व विशेष कार्यअधिकारी का बेटे को नियुक्ति दी गई थी।
इतना ही नहीं, इन नियुक्तियों में कम से कम पांच ऐसे लोग भी शामिल हैं, जो दो निजी फर्मों, टीआर डाटा प्रोसेसिंग और राभव के मालिकों के रिश्तेदार हैं, जिन्होंने कोरोना की पहली लहर के दौरान एग्जाम दिया था। इन सभी को तीन साल पहले यूपी विधानमंडलों को प्रशासित करने वाले दो सचिवालयों में नियुक्त किया गया था।
असफल कैंडिडेट्स ने दायर की थी याचिका
18 सितंबर 2023 को एक आदेश में, तीन असफल कैंडिडेट्स, सुशील कुमार, अजय त्रिपाठी और अमरीश कुमार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इसकी सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट की दो जजों की बेंच ने इसे चौंकाने वाला और भर्ती से कम नहीं कहा। जहां कुछ भर्तियां गैर कानूनी तरीके से हुईं जिसके चलते उनकी विश्वसनीयता ही कम हो गई।
विधान परिषद की अपील पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सीबीआई (CBI) जांच पर रोक लगा दी और अगली सुनवाई 6 जनवरी, 2025 को निर्धारित की गई है। ये नियुक्तियां कम से कम 15 समीक्षा अधिकारियों (RO), 27 सहायक आरओ और जूनियर पदों से संबंधित हैं।