आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (RSS chief Mohan Bhagwat) रविवार को नागपुर में उत्तिष्ठ भारत कार्यक्रम (Uttishtha Bharat Event) में शामिल हुए। इस मौके पर उन्होंने कहा कि हम अलग दिख सकते हैं। हम अलग-अलग चीजें खा सकते हैं, लेकिन हमारा अस्तित्व एकता में है। विविध होकर भी एक रहना और आगे बढ़ना कुछ ऐसा है, जो दुनिया भारत से सीख सकती है।
नागपुर। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (RSS chief Mohan Bhagwat) रविवार को नागपुर में उत्तिष्ठ भारत कार्यक्रम (Uttishtha Bharat Event) में शामिल हुए। इस मौके पर उन्होंने कहा कि हम अलग दिख सकते हैं। हम अलग-अलग चीजें खा सकते हैं, लेकिन हमारा अस्तित्व एकता में है। विविध होकर भी एक रहना और आगे बढ़ना कुछ ऐसा है, जो दुनिया भारत से सीख सकती है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि समाज और देश के लिए काम करने का संकल्प लें। हम देश के लिए फांसी पर चढ़ेंगे, हम देश के लिए काम करेंगे। हम भारत के लिए गीत गाएंगे। जीवन भारत को समर्पित होना चाहिए।
मोहन भागवत ने ‘India@2047: My Vision My Action’ पर कहा कि पूरी दुनिया विविधता के प्रबंधन के लिए भारत की ओर देख रही है। जब विविधता को कुशलता से प्रबंधित करने की बात आती है, तो दुनिया भारत की ओर इशारा करती है। दुनिया विरोधाभासों से भरी है, लेकिन प्रबंधन केवल भारत ही कर सकता है।’
‘जाति और वर्ण व्यवस्था’ की आलोचना
‘जाति और वर्ण व्यवस्था’ की आलोचना करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवन ने कहा कि ऐसी कई ऐतिहासिक घटनाएं हुई हैं जो हमें कभी नहीं बताई गईं और न ही सही तरीके से सिखाई गईं। जिस स्थान पर संस्कृत व्याकरण का जन्म हुआ वह भारत में नहीं है। क्या हमने कभी एक सवाल पूछा क्यों? हम पहले ही अपने ज्ञान को भूल गए थे, बाद में विदेशी आक्रमणकारियों ने हमारी भूमि पर कब्जा कर लिया। हममें मतभेद पैदा करने के लिए अनावश्यक रूप से जातियों की खाई बनाई गई।’
हम अहिंसा के पुजारी हैं, दुर्बलता के नहीं
मोहन भागवत ने कहा कि भारत को बड़ा बनाना है। इसके लिए हमें डर छोड़ना होगा. जब हम डरना छोड़ेंगे, तभी भारत अखंड होगा। हम अहिंसा के पुजारी जरूर हैं, लेकिन दुर्बलता के नहीं. उन्होंने कहा, भाषा, पहनावे, संस्कृतियों में हमारे बीच छोटे अंतर हैं, लेकिन हमें इन चीजों में नहीं फंसना चाहिए। संघ प्रमुख ने कहा कि देश की सभी भाषाएं राष्ट्रभाषाएं हैं। विभिन्न जातियों के सभी लोग अपने हैं’, हमें ऐसा स्नेह रखने की जरूरत है।