भगवान शिव (Lord Shiva) और नंदी के बीच एक गहरा रिश्ता है। शायद इसलिए नंदी हमेशा भगवान शिव की प्रतिमा के सामने विराजते हैं। वो न सिर्फ भगवान शिव (Lord Shiva) के वाहन हैं बल्कि शिव के गणों में सबसे श्रेष्ठ भी हैं। कहा जाता है कि सभी भक्तों की आवाज़ को नंदी ही शिव तक पहुंचाते हैं। नंदी की प्रार्थना को भगवान शिव (Lord Shiva) कभी अनसुनी नहीं करते, इसलिए भक्तों की हर मनोकामना नंदी की बदौलत जल्दी पूरी हो जाती है।
नई दिल्ली: भगवान शिव (Lord Shiva) और नंदी के बीच एक गहरा रिश्ता है। शायद इसलिए नंदी हमेशा भगवान शिव की प्रतिमा के सामने विराजते हैं। वो न सिर्फ भगवान शिव (Lord Shiva) के वाहन हैं बल्कि शिव के गणों में सबसे श्रेष्ठ भी हैं। कहा जाता है कि सभी भक्तों की आवाज़ को नंदी ही शिव तक पहुंचाते हैं। नंदी की प्रार्थना को भगवान शिव (Lord Shiva) कभी अनसुनी नहीं करते, इसलिए भक्तों की हर मनोकामना नंदी की बदौलत जल्दी पूरी हो जाती है।
आपको बता दें, भगवान शिव (Lord Shiva) और नंदी के इस घनिष्ठ संबंध को देखकर मन में यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या भोलेनाथ नंदी के बिना अधूरे हैं? आज हम आपको बताते हैं कि नंदी भगवान शिव के सारे गणों में सबसे श्रेष्ठ और अच्छे दोस्त कैसे बने? और नंदी शिव को इतने प्यारे क्यों हैं?
शिलाद ऋषि (shilad rishi) के पुत्र थे नंदी पुराणों में प्रचलित एक कहानी के मुताबिक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करनेवाले शिलाद ऋषि को अपने वंश को आगे बढ़ाने की चिंता सताने लगी थी। वंश को आगे बढ़ाने के लिए वे एक पुत्र को गोद लेना चाहते थे। इसी कामना से उन्होने भगवान शिव (Lord Shiva) को प्रसन्न करने के लिए उनकी आराधना शुरू की।
शिलाद ऋषि के कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए और वरदान देते हुए कहा कि जल्द ही उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति होगी। अगले दिन ही शिलाद ऋषि (shilad rishi) को खेत में एक खूबसूरत नवजात शिशु मिला। इतने में ही उन्हें एक आवाज सुनाई दी, “यही तुम्हारी संतान है, इसका अच्छी तरह से पालन-पोषण करना।”
कुछ समय बाद जब शिलाद ऋषि (shilad rishi) को यह पता चला कि उनका पुत्र नंदी अल्पायु है तो वे काफी परेशान हुए। लेकिन जब नंदी को इस बात की जानकारी हुई तो उन्होने कहा कि भगवान शिव की कृपा से उनका जन्म हुआ है इसलिए वे ही उनकी रक्षा भी करेंगे। पिता का आशीर्वाद लेकर नंदी भुवन नदी के किनारे तप करने चले गए।
नंदी की आस्था और कठोर तप से प्रसन्न होकर शिव जी प्रकट हुए और नंदी ने वरदान के रूप में सारी उम्र के लिए शिव का साथ मांग लिया। नंदी ने शिव जी से प्रार्थना की कि वह हर समय उनके साथ रहना चाहते हैं। नंदी की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और बैल का चेहरा देकर उन्हें अपने वाहन, अपना दोस्त, अपने गणों में सबसे ऊंचा दर्जा देते हुए स्वीकार कर लिया।
असुरों और देवताओं के बीच समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला तो संसार को बचाने के लिए इस विष को खुद शिव ने पी लिया था। लेकिन विष की कुछ बूंदे ज़मीन पर गिर गई, जिसे नंदी ने अपने जीभ से साफ किया था। नंदी के इस समर्पण भाव को देखकर शिव जी प्रसन्न हुए और नंदी को अपने सबसे बड़े भक्त की उपाधि देते हुए कहा कि मेरी सभी ताकतें नंदी की भी हैं।
अगर पार्वती की सुरक्षा मेरे साथ है तो वह नंदी के साथ भी है। ये तो भगवान शिव के प्रति नंदी की भक्ति और समर्पण का ही कमाल है, जो दोनों का साथ इतना मज़बूत हो गया कि इस कलयुग में भी भगवान शिव के साथ नंदी की पूजा की जाती है।