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Jhansi Medical College Fire Accident : फरवरी में सेफ्टी ऑडिट और जून में मॉक ड्रिल, सरकार! हादसे में गलती किसकी?

Jhansi Medical College Fire Accident: झांसी मेडिकल कॉलेज में फरवरी में अग्नि सुरक्षा ऑडिट (Fire Safety Audit) और जून में मॉक ड्रिल (Mock Drill) की गई थी। झांसी मेडिकल कॉलेज (Jhansi Medical College) में 10 शिशुओं की मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है।

By संतोष सिंह 
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Jhansi Medical College Fire Accident: झांसी मेडिकल कॉलेज में फरवरी में अग्नि सुरक्षा ऑडिट (Fire Safety Audit) और जून में मॉक ड्रिल (Mock Drill) की गई थी। झांसी मेडिकल कॉलेज (Jhansi Medical College) में 10 शिशुओं की मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इससे शिशुओं को विश्वस्तरीय बेहतरीन इलाज देने का दावा करने वाले अस्पताल पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। मौके पर पहुंचे यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक (UP Deputy CM Brajesh Pathak) ने बताया कि फरवरी में फायर सेफ्टी ऑडिट (Fire Safety Audit) हुआ था। जून में एक मॉक ड्रिल भी किया गया था। यह घटना कैसे हुई और क्यों हुई, इस बारे में जांच रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा?

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इस साल जनवरी में एक न्यूज चैनल के तरफ से प्रकाशित रिपोर्ट में लिखा था कि नवजात गहन देखभाल इकाई (NICU) झांसी मेडिकल कॉलेज में गंभीर चिकित्सा समस्याओं से पीड़ित शिशुओं को सर्वोत्तम उपचार मिलेगा। इस वार्ड को आधुनिक सुविधाओं एवं उपकरणों से सुसज्जित किया गया है। बताया गया कि झांसी मेडिकल कॉलेज (Jhansi Medical College) में 51 बेड का नया एनआईसीयू वार्ड बनाया जा रहा है। इस वार्ड का 70 फीसदी से अधिक काम पूरा हो चुका है। यह काम फरवरी के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है। यह वार्ड 70 लाख से अधिक की लागत से बनाया जा रहा है।

एनआईसीयू वार्ड के नोडल अधिकारी एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डाॅ. ओम शंकर चौरसिया ने कहा था कि नये एनआईसीयू वार्ड के निर्माण के बाद बीमार बच्चों को एक ही स्थान पर आधुनिक चिकित्सा मशीनों से इलाज मिल सकेगा। उन्होंने बताया था कि बच्चों और माताओं को एक साथ रखने की भी व्यवस्था की गई है। चौरसिया ने कहा कि वहां इन्फ्यूजन पंप, मल्टीपैरा पेशेंट मॉनिटर, वेंटिलेटर, ऑटो सी-पैप, एलईडी फोटो थेरेपी, अल्ट्रासाउंड, इको आदि जैसी सभी सुविधाएं होंगी। लेकिन वास्तविकता यह है कि एनआईसीयू में आग लगने की घटना ने 10 शिशुओं और कई अन्य लोगों की जान ले ली, जो झुलस गए। इससे व्यापक चिंता बढ़ गई है। यूपी के सीएम ने दुर्भाग्यपूर्ण घटना का संज्ञान लिया है और जांच के आदेश दिए गए हैं।

जिले मुख्य चिकित्सा अधीक्षक, सचिन माहोर ने कहा कि एनआईसीयू वार्ड में 54 बच्चे भर्ती थे। अचानक ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के अंदर आग लग गई। आग बुझाने के प्रयास किए गए लेकिन चूंकि कमरा अत्यधिक ऑक्सीजन युक्त था, इसलिए आग तेजी से फैल गई। कई शिशुओं को बचाया गय। 10 बच्चों की मौत हो गई है और घायल बच्चों का इलाज चल रहा है।अधिकारियों के मुताबिक प्रथम दृष्टया आग लगने का कारण शॉर्ट सर्किट बताया जा रहा है। अधिकारियों ने कहा कि आग ऑक्सीजन सांद्रक के अंदर लगी और कमरा अत्यधिक ऑक्सीजन युक्त होने के कारण आग फैलने में मदद मिली।

जनता को “वर्ल्ड क्लास” सुविधाएं देने के नाम जनता को मूर्ख बनाने की यह परंपरा कब तक चलेगी?

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बतातें चलें कि झांसी के मेडिकल कॉलेज में 51 बेड का “नया NICU वार्ड” बनाने की बड़ी-बड़ी बातें हो रही थीं। वर्ल्ड क्लास सुविधाएं देने के नाम पर एक और दिखावटी ढांचा तैयार किया जा रहा है। ऐसे प्रचार में, हकीकत अक्सर चकाचौंध की चमक के नीचे दब जाती है। 70 फीसदी काम पूरा हो गया है, ऐसा कहकर जनता को भरोसा दिलाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन असलियत यह है कि अधिकतर “अधूरी परियोजनाएं” सिर्फ कागजों में ही पूरी हो जाती हैं। कंगारू मदर केयर रूम जैसी “हाई-फाई” सुविधाओं के नाम पर माता-पिता से उम्मीद की जाएगी कि वे अपने नवजात शिशु को बेहतर इलाज के भ्रम में यहां लाएं।

अक्सर देखा गया है कि ऐसी घोषणाओं के बाद वार्ड तो बन जाते हैं, लेकिन न डॉक्टर पूरे होते हैं, न ही जरूरी मशीनें काम करती हैं। NICU जैसे संवेदनशील स्थानों पर, बिना प्रशिक्षित स्टाफ और रख-रखाव के, सारी सुविधाएं महज दिखावा साबित होती हैं।

क्या इस बार भी वही होगा?  जनता को “वर्ल्ड क्लास” कहकर मूर्ख बनाने की यह परंपरा कब तक चलेगी? असली सवाल यह है कि क्या सरकार इन वार्ड्स के लिए स्थायी समाधान और पारदर्शिता सुनिश्चित करेगी? आशा है कि इस बार दिखावा नहीं, बल्कि असली बदलाव देखने को मिलेगा। वरना, झूठे प्रचारों और अधूरे वादों के इस जाल में सिर्फ नवजात शिशु और उनके माता-पिता ही फंसते रहेंगे।

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