देव भूमि उत्तराखंड में हरेला पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। हरेला के आगमन की तैयारियां लोग पहले से करने लगते है। इस बार लोकपर्व हरेला 17 जुलाई यानी आज से शुरू हो रहा है।
Lok Parv Harela : देव भूमि उत्तराखंड में हरेला पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। हरेला के आगमन की तैयारियां लोग पहले से करने लगते है। इस बार लोकपर्व हरेला 17 जुलाई यानी आज से शुरू हो रहा है। इस पर्व की पौराणिक मान्यता है। लोक पर्व भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित हैं। पर्व पर लोग भगवान शिव के परिवार की पूजा कर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। यह पर्व देवभूमि की संस्कृति को उजागर करते हैं। , वहीं पहाड़ की परंपराओं को भी कायम रखे हुए। हरेला उत्तराखंड में एक लोकपर्व है| हरेला शब्द का तात्पर्य हरयाली से हैं| यह पर्व वर्ष में तीन बार आता हैं| पहला चैत मास में दूसरा श्रावण मास में तथा तीसरा वर्ष का आखिरी पर्व हरेला आश्विन मास में मनाया जाता हैं।
परंपरानुसार,सावन लगने से नौ दिन पहले पांच या सात प्रकार के अनाज के बीज एक रिंगाल को छोटी टोकरी में मिटटी डाल के बोई जाती हैं इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाया जाता है और प्रतिदिन सुबह पानी से सींचा जाता है। 9 वें दिन इनकी पाती की टहनी से गुड़ाई की जाती है और दसवें यानि कि हरेला के दिन इसे काटा जाता है। और विधि अनुसार घर के बुजुर्ग सुबह पूजा-पाठ करके हरेले को देवताओं को चढ़ाते हैं। उसके बाद घर के सभी सदस्यों को हरेला लगाया जाता हैं।
गांव में हरेला पर्व को सामूहिक रूप से स्थानीय ग्राम देवता मंदिर में भी मनाया जाता है। श्रावण मास के हरेले में भगवान शिव परिवार की पूजा अर्चना की जाती है (शिव,माता पार्वती और भगवान गणेश) की मूर्तियां शुद्ध मिट्टी से बना कर उन्हें प्राकृतिक रंग से सजाया-संवारा जाता है जिन्हें स्थानीय भाषा में डिकारे कहां जाता है।