ब्राजील के महान फुटबॉल खिलाड़ी पेले ने दुनिया को अलविदा कह दिया। दिग्गज खिलाड़ी का 82 साल की उम्र में का निधन हो गया है।
Magician of Football Pele: ब्राजील के महान फुटबॉल खिलाड़ी पेले ने दुनिया को अलविदा कह दिया। दिग्गज खिलाड़ी का 82 साल की उम्र में का निधन हो गया है। पिछले कुछ समय से किडनी और प्रोस्टेट की बीमारियों जूझ रहे थे। 21 साल लंबे फुटबॉल करियर के दौरान 1363 मुकाबलों में उनके नाम 1,281 गोल करने का वर्ल्ड रिकॉर्ड है। फुटबॉल की दुनिया में पेले सदियों तक चमकते रहेगें। फुटबॉल से उनका लगाव उनके द्वारा बनाये गए रिकॉर्ड बोलते है। दुनिया भर के फुटबॉल प्रेमी पेले से प्रेरणा लेते है और उनके जैसा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए प्रयास करते है। पेले के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से लिखा गया है, “पेले केवल सर्वकालिक महान खिलाड़ी भर नहीं थे। वे उससे भी ज़्यादा थे।”
प्लेयर ऑफ द सेंचुरी
महान फ़ुटबाल खिलाड़ी पेले एकमात्र फुटबॉलर रहे जिन्होने जिन्होंने तीन बार वर्ल्ड कप जीता। 1958, 1962 और 1970 में वर्ल्ड कप जीतने वाली ब्राज़ील टीम में वे शामिल रहे। उन्हें साल 2000 में फ़ीफ़ा के प्लेयर ऑफ द सेंचुरी का तमगा दिया गया।
फुटबॉल के शहंशाह
फुटबॉल को कई दशकों पहले अलविदा कहने वाले पेले को आम खिलाड़ी नहीं रहे, बल्कि वो फुटबॉल के शहंशाह कहलाए गए। फुटबॉलर पेले को दुनियाभर में ब्लैक डायमंड और ब्लैक पर्ल के नाम से पहचान मिली थी।
फुटबॉलर पेले का जीवन परिचय
पेले का जन्म 23 अक्टूबर 1940 को ब्राजील के ट्रेस कोरकोएस शहर में हुआ था। पेले के पिता का नाम डॉनडीनहो था। जबकि उनकी माता का नाम डोना सेलेस्टी अरांटेस था। पेले (Pele) का पूरा नाम एडसन अरांटीस डो नैसीमेंटो (Edson Arantes Do Nacimento) है। लेकिन इन्हे हमेशा पेले के नाम से ही फुटबॉल जगत में पहचान मिली। फुटबॉल को कई दशकों पहले अलविदा कहने वाले ब्राज़ील के पेले का गुणगान आज भी फुटबॉल की दुनिया में सबसे अधिक सुनने को मिलता हैं।
पिता का सपना पूरा करना था
बता दें पेले के पिता भी फुटबाल के खिलाड़ी रहे थे। यही वह खास वजह थी जो पेले को फुटवॉल की तरफ खींच लाई।
बचपन से ही पेले फुटबॉल के दीवाने थे। लेकिन वो इसके लिए ट्रेनिंग नहीं ले पाए। इसके पीछे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति थी। पेले का बचपन गरीबी में बीता था। उनके परिवार की आमदनी से घर खर्चा चलना भी बेहद मुश्किल था। ऐसे में पेले की पढ़ाई और फुटबॉल की कोचिंग तो बहुत दूर की बात थी। लेकिन पेले को एक फुटबॉल खिलाड़ी बनकर अपने पिता का सपना पूरा करना था। ऐसे में तमाम मुश्किलों के बावजूद पेले ने फुटबॉल जगत में अपनी एक विशेष छाप छोड़ी।
फुटबॉल के किंग कहलाए
बता दें जब उनको बचपन में पैसो के चलते उनके माता-पिता फुटबॉल की कोचिंग में नहीं भेज पाए तो उन्होंने खुद मेहनत करनी शुरू कर दी। एक्स्ट्रा पैसों के लिए पेले ने चाय की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने जुराब में रुई डालकर फुटबॉल की प्रैक्टिस की। परिवार की गरीबी को उन्होंने अपने करियर के आगे हावी नहीं होने दिया। और बिना घर वालों पर बोझ बनकर खुद अपनी मेहनत और लगन से फुटबॉल के किंग कहलाए।