HBE Ads
  1. हिन्दी समाचार
  2. एस्ट्रोलोजी
  3. Narada Jayanti (25th May) special : लोकमंगल के संचारकर्ता हैं नारद -प्रो. संजय द्विवेदी

Narada Jayanti (25th May) special : लोकमंगल के संचारकर्ता हैं नारद -प्रो. संजय द्विवेदी

ब्रम्हर्षि नारद लोकमंगल के लिए संचार करने वाले देवता के रूप में हमारे सभी पौराणिक ग्रंथों में एक अनिवार्य उपस्थिति हैं। वे तीनों लोकों में भ्रमण करते हुए जो कुछ करते और कहते हैं, वह इतिहास में दर्ज है। इसी के साथ उनकी गंभीर प्रस्तुति ‘नारद भक्ति सूक्ति’ में प्रकट होती है, जिसकी व्याख्या अनेक आधुनिक विद्वानों ने भी की है।

By अनूप कुमार 
Updated Date

  Narada Jayanti (25th May) special :   ब्रम्हर्षि नारद लोकमंगल के लिए संचार करने वाले देवता के रूप में हमारे सभी पौराणिक ग्रंथों में एक अनिवार्य उपस्थिति हैं। वे तीनों लोकों में भ्रमण करते हुए जो कुछ करते और कहते हैं, वह इतिहास में दर्ज है। इसी के साथ उनकी गंभीर प्रस्तुति ‘नारद भक्ति सूक्ति’ में प्रकट होती है, जिसकी व्याख्या अनेक आधुनिक विद्वानों ने भी की है। नारद जी की लोकछवि जैसी बनी और बनाई गई है, वे उससे सर्वथा अलग हैं। उनकी लोकछवि झगड़ा लगाने या कलह पैदा करने वाले व्यक्ति कि है, जबकि हम ध्यान से देखें तो उनके प्रत्येक संवाद में लोकमंगल की भावना ही है। भगवान के दूत के रूप में उनकी आवाजाही और उनके कार्य हमें बताते हैं कि वे निरर्थक संवाद नहीं करते। वे निरर्थक प्रवास भी नहीं करते। उनके समस्त प्रवास और संवाद सायास हैं। सकारण हैं। उद्देश्य की स्पष्टता और लक्ष्यनिष्ठा के वे सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। हम देखते हैं कि वे देवताओं के साथ राक्षसों और समाज के सब वर्गों से संवाद रखते हैं। सब उन पर विश्वास भी करते हैं। देवताओं, मनुष्यों और राक्षसों के बीच ऐसा समान आदर तो देवाधिदेव इंद्र को भी दुर्लभ है। वे सबके सलाहकार, मित्र, आचार्य और मार्गदर्शक हैं। वे कालातीत हैं। सभी युगों और सभी लोकों में समान भाव से भ्रमण करने वाले। ईश्वर के विषय में जब वे हमें बताते हैं, तो उनका दार्शनिक व्यक्तित्व भी हमारे सामने प्रकट हो जाता है।

पढ़ें :- Fourth Bada Mangal 2024 : कल मनाया जाएगा ज्येष्ठ माह का चौथा बड़ा मंगल , हनुमान जी को लाल चोला चढ़ाएं

लोकमंगल की एक यात्रा प्रारंभ होती है
    पुराणों में नारद जी को भागवत संवाददाता की तरह देखा गया है। हम यह भी जानते हैं कि वाल्मीकि जी ने रामायण और महर्षि व्यास ने श्रीमद्भागवत गीता का सृजन नारद जी प्रेरणा से ही किया था। नारद अप्रतिम संगीतकार हैं। उन्होंने गंधर्वों से संगीत सीखकर खुद को सिद्ध किया, नारद संहिता ग्रंथ की रचना की। नारद ने कठोर तपस्या कर भगवान विष्णु से संगीत का वरदान लिया। सबसे खास बात यह है कि वे महान ऋषि परंपरा से आते हैं, किंतु कोई आश्रम नहीं बनाते, कोई मठ नहीं बनाते। वे सतत प्रवास पर रहते हैं ,उनकी हर यात्रा उदेश्यपरक है। एक सबसे बड़ा उद्देश्य तो निरंतर संपर्क और संवाद है,साथ ही वे जो कुछ वहां कहते हैं, उससे लोकमंगल की एक यात्रा प्रारंभ होती है। उनसे सतत संवाद,सतत प्रवास, सतत संपर्क, लोकमंगल के लिए संचार करने की सीख ग्रहण की जा सकती है।

नारद का स्वयं का कोई हित नहीं था
भारत के प्रथम हिंदी समाचार-पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ के प्रकाशन के लिए संपादक पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने देवर्षि नारद जयंती (30 मई, 1826 / ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया) की तिथि का ही चुनाव किया था। हिंदी पत्रकारिता की आधारशिला रखने वाले पंडित जुगलकिशोर शुक्ल ने ‘उदन्त मार्तण्ड’ के प्रथम अंक के प्रथम पृष्ठ पर आनंद व्यक्त करते हुए लिखा कि आद्य पत्रकार देवर्षि नारद की जयंती के शुभ अवसर पर यह पत्रिका प्रारंभ होने जा रही है। इससे पता चलता है परंपरा में नारद जी की जगह क्या है। इसी तरह एक अन्य उदाहरण है। नारद जी को संकटों का समाधान संवाद और संचार से करने में महारत हासिल है। आज के दौर में उनकी यह शैली विश्व स्वीकृत है। समूचा विश्व मानने लगा है कि युद्ध अंतिम विकल्प है। किंतु संवाद शास्वत विकल्प है। कोई भी ऐसा विवाद नहीं है, जो बातचीत से हल न किया जा सके। इन अर्थों में नारद सर्वश्रेष्ठ लोक संचारक हैं।

सबसे बड़ी बात है नारद का स्वयं का कोई हित नहीं था। इसलिए उनका समूचा संचार लोकहित के लिए है। नारद भक्ति सूत्र में 84 सूत्र हैं। ये भक्ति सूत्र जीवन को एक नई दिशा देने की सार्मथ्य रखते हैं। इन सूत्रों को प्रकट ध्येय तो ईश्वर की प्राप्ति ही है, किंतु अगर हम इनका विश्लेषण करें तो पता चलता है इसमें आज की मीडिया और मीडिया साथियों के लिए भी उचित दिशाबोध कराया गया है। नारद भक्ति सूत्रों पर ओशो रजनीश, भक्ति वेदांत,स्वामी प्रभुपाद, स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि,गुरूदेव श्रीश्री रविशंकर,श्री भूपेंद्र भाई पंड्या, श्री रामावतार विद्या भास्कर,स्वामी अनुभवानंद, हनुमान प्रसाद पोद्दार, स्वामी चिन्मयानंद जैसे अनेक विद्वानों ने टीकाएं की हैं। जिससे उनके दर्शन के बारे में विस्तृत समझ पैदा होती है।

सार्वजनिक संवाद में शुचिता और मूल्यबोध की चेतना आवश्यक है
पत्रकारिता की दृष्टि से कई विद्वानों ने नारद जी के व्यक्तित्व और कृतित्व का आकलन करते हुए लेखन किया है। हालांकि उनके संचारक व्यक्तित्व का समग्र मूल्यांकन होना शेष है। क्योंकि उनपर लिखी गयी ज्यादातर पुस्तकें उनके आध्यात्मिक और दार्शनिक पक्ष पर केंद्रित हैं। काशी विद्यापीठ के पत्रकारिता के आचार्य प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने ‘आदि पत्रकार नारद का संचार दर्शन’ शीर्षक से एक पुस्तक लिखी है। संचार के विद्वान और हरियाणा उच्च शिक्षा आयोग के अध्यक्ष प्रो. बृजकिशोर कुठियाला मानते हैं, नारदजी सिर्फ संचार के ही नहीं, सुशासन के मंत्र दाता भी हैं। वे कहते हैं-“व्यास ने नारद के मुख से युधिष्ठिर से जो प्रश्न करवाये उनमें से हर एक अपने आप में सुशासन का एक व्यावहारिक सिद्धांत है। 123 से अधिक प्रश्नों को व्यास ने बिना किसी विराम के पूछवाया।

पढ़ें :- 17 june ka Itihas: ये हैं आज के दिन की प्रमुख ऐतिहासिक घटनाएं

नारद जी के भक्ति सूत्र
कौतुहल का विषय यह भी है कि युधिष्ठिर ने इन प्रश्नों का उत्तर एक-एक करके नहीं दिया परंतु कुल मिलाकर यह कहा कि वे ऋषि नारद के उपदेशों के अनुसार ही कार्य करते आ रहे हैं और यह आश्वासन भी दिया कि वह इसी मार्गदर्शन के अनुसार भविष्य में भी कार्य करेंगे।” एक सुंदर दुनिया बनाने के लिए सार्वजनिक संवाद में शुचिता और मूल्यबोध की चेतना आवश्यक है। इससे ही हमारा संवाद लोकहित केंद्रित बनेगा। नारद जयंती के अवसर नारद जी के भक्ति सूत्रों के आधार पर आध्यात्मिकता के घरातल पर पत्रकारिता खड़ी हो और समाज के संकटों के हल खोजे, इसी में उसकी सार्थकता है।


(लेखक भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के पूर्व महानिदेशक हैं)

इन टॉपिक्स पर और पढ़ें:
Hindi News से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर पर फॉलो करे...