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सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों की चिन्ता न तो अब मीडिया और न ही सत्ताधारी दल के नेताओं को, टूट रहा है परिवार के सब्र का बांध

राजस्थान विधानसभा चुनाव के मतदान दिन तक मीडिया के चैनलों में यह प्रचारित किया गया कि जैसे मजदूर कभी भी निकल सकते हैं। मतदान के दिन तो ऐसा लगने लगा था कि आज जरूर निकल जायेंगे और कहीं ऐसा न हो कि इधर मतदान हो रहा हो और उधर टीवी पर एंकर दिखायें कि मजदूर कैसे सुरक्षित निकल रहे हैं? लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।

By संतोष सिंह 
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उत्तरकाशी। राजस्थान विधानसभा चुनाव के मतदान दिन तक मीडिया के चैनलों में यह प्रचारित किया गया कि जैसे मजदूर कभी भी निकल सकते हैं। मतदान के दिन तो ऐसा लगने लगा था कि आज जरूर निकल जायेंगे और कहीं ऐसा न हो कि इधर मतदान हो रहा हो और उधर टीवी पर एंकर दिखायें कि मजदूर कैसे सुरक्षित निकल रहे हैं? लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।

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सुरंग में फंसे 41 मजदूरों की चिन्ता न तो अब मीडिया वालों को है और न ही सत्ताधारी दल के नेताओं को नजर आ रही है। अब श्रमिकों के परिजनों व जनता के मन में यह सवाल नहीं है कि सरकार के बाकी के उपायों का क्या हुआ? जो मशीन बार-बार टूट रही थी उससे कामयाबी नहीं मिलेगी इसका पूर्वानुमान सरकारी अमले को क्यों नहीं था। अब तो केंद्रीय गृह मंत्रालय की एजेंसी राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य सैयद अता हसनैन भी कह रहे हैं कि ऑपरेशन तकनीकी रूप से अधिक जटिल होता जा रहा है। हमने बचाव प्रयास के लिए कभी कोई समय सीमा नहीं दी है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हम अप्रत्याशित माहौल में काम कर रहे हैं। युद्ध जैसी स्थिति में हैं। युद्ध जैसी स्थिति में हम यह नहीं पूछते कि ऑपरेशन कब ख़त्म होगा? अब इस अभियान में जुटा अमला वर्टिकल ड्रिलिंग व मैनुअली खोदाई की तैयारी में जुटा है।

सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों की चिन्ता जताते हुए कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी मीडिया के बहाने बड़ा सवाल इस ​अभियान के लेट लतीफी पर सवाल उठा चुके हैं। राहुल गांधी ने मीडिया पर कटाक्ष करते हुए बीते दिनों कहा था कि वह सिर्फ क्रिकेट दिखाता है। उसे मजदूरों से कोई लेना देना नहीं था। ऐसे में अब विश्वकप खत्म हो गया तो उसका और सरकार का ध्यान क्रिकेट तो उसका ध्यान इस तरफ आया है। मीडिया के मजदूरों की जान महत्वपूर्ण नहीं ​​बल्कि टीआरपी है। मजदूरों के परिजन भी अब दबी जुबान कहते हैं कि अगर किसी राजनेता या बड़े आदमी के बच्चे किसी संकट में फंसे होते तो शायद इतना विलंब न होता।

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