हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई हैं। जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है।
पितृ पक्ष: हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। हिंदू धर्म शास्त्रों (Hindu scriptures) में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई हैं। जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा (Bhadrapada Purnima)से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या (Ashwin Krishnapaksha Amavasya) तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं। पितृपक्ष में हिन्दू लोग मन कर्म एवं वाणी से संयम का जीवन जीते हैं। पितरों को स्मरण करके जल चढाते हैं। निर्धनों एवं ब्राह्मणों को दान देते हैं। पितृपक्ष (Pitru Paksha) में प्रत्येक परिवार में मृत माता-पिता का श्राद्ध किया जाता है। गया में श्राद्ध का विशेष महत्व है। वैसे तो इसका भी शास्त्रीय समय निश्चित है, परंतु ‘गया सर्वकालेषु पिण्डं दधाद्विपक्षणं’ कहकर सदैव पिंडदान करने की अनुमति दे दी गई है।
पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष 20 सितंबर 2021 दिन सोमवार को भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से आरंभ हो रहा है। पितृ पक्ष का समापन 6 अक्टूबर 2021 दिन बुधवार को आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर होगा। इंग्लिश कलैंडर के अनुसार श्राद्ध अक्सर सितंबर महीने में ही शुरू होते हैं, जो कि 16 दिन तक चलते हैं।
हिंदू धर्म के अनुसार पितृ पक्ष के समय यमराज पितरों को अपने परिवारजनों से मिलने की आज्ञा दे देते हैं और उन्हें आजाद कर देते हैं। इस समय में अगर पितरों का श्राद्ध पूजन न किया जाए तो उनकी आत्मा बहुत दुःखी होती है और वे नाराज भी हो सकते हैं।