भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने किसानों और आदिवासियों से अपने हितों की रक्षा के लिए संगठित होने का आवाह्न किया। राकेश टिकैत ने ट्वीट कर कहा कि "जल, जंगल, जमीन" बचाने लिए किसानों और आदिवासियों को संगठित होकर लड़ाई लड़ने की अपील की। टिकैत ने ट्वीट करते हुए लिखा कि यदि अपनी जमीन और जल-जंगल बचाने हैं तो किसानों और आदिवासियों को देश के लुटेरों के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़नी होगी।
नई दिल्ली। भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने किसानों और आदिवासियों से अपने हितों की रक्षा के लिए संगठित होने का आवाह्न किया। राकेश टिकैत ने ट्वीट कर कहा कि “जल, जंगल, जमीन” बचाने लिए किसानों और आदिवासियों को संगठित होकर लड़ाई लड़ने की अपील की। टिकैत ने ट्वीट करते हुए लिखा कि यदि अपनी जमीन और जल-जंगल बचाने हैं तो किसानों और आदिवासियों को देश के लुटेरों के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़नी होगी।
यदि किसानों को अपनी ज़मीन और आदिवासियों को अपने जल, जंगल, जमीन बचाने हैं तो उन्हें देश के लुटेरों के खिलाफ लम्बी लड़ाई लड़नी होगी..!#FarmersProtest
— Rakesh Tikait (@RakeshTikaitBKU) June 15, 2021
बता दें कि राकेश टिकैत पहले भी कई दफा किसानों और आदिवासियों से अपनी आवाज बुलंद करने का आवाह्न कर चुके हैं। हालांकि, इस बार उनका आशय जंगल बचाने से था। बता दें कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर जंगलों का दोहन हो रहा है। इसके अलावा पूर्वोत्तर भारत में भी पेड़ काटने की खबरें आती रही हैं। इन दिनों सबसे ज्यादा सुर्खियों में मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के बकस्वाहा के जंगल हैं। बकस्वाहा क्षेत्र में बंदर हीरा खनन परियोजना (बंदर डायमंड प्रोजेक्ट) को सरकार द्वारा अनुमति दिए जाने के बाद लोगों में भारी नाराजगी है। एक शोध के मुताबिक, इस क्षेत्र में 3.2 करोड़ कैरेट के हीरे हैं।
मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ में खत्म हो रहे जंगल बकस्वाहा के जंगल में 2 लाख से ज्यादा पेड़ों के कटने के खिलाफ देशभर के पर्यावरण संरक्षण से जुड़े 50 संगठनों समेत 12 हजार से ज्यादा लोग साथ आए हैं। जिसे लेकर सोशल मीडिया पर भी “स्टैंड विद बकस्वाहा” ट्रेंड हुआ। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में जनहित याचिका दायर की गई। इसके अलावा जंगल बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की गई। यह याचिका दिल्ली की नेहा सिंह की ओर से दायर की गई, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। हालांकि, कोर्ट से लोगों को कोई खास राहत नहीं मिली। अब पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि, पेड़ काटे तो चिपको आंदोलन होगा।