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अयोध्या धाम, ओरछा धाम, काशी धाम, चित्रकूट धाम, मथुरा धाम की यर्थार्थ गाथा व मार्डन पूजा-साधना पद्धति का विमोचन

अयोध्या का इतिहास सदियों पुराना है। इसका सतयुग त्रेता, द्वापर और कलयुग में व्यापक रूप से धर्म ग्रंथों में उल्लेख किया है। अयोध्या की संस्कृति लगभग 496 साल से इस आर्यावर्त के मर्यादा पुरूषोत्तम राम की नगरी में उनके जन्मस्थान पर मंदिर के लिए संघर्ष रहा।

By संतोष सिंह 
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अयोध्या। अयोध्या का इतिहास सदियों पुराना है। इसका सतयुग त्रेता, द्वापर और कलयुग में व्यापक रूप से धर्म ग्रंथों में उल्लेख किया है। अयोध्या की संस्कृति लगभग 496 साल से इस आर्यावर्त के मर्यादा पुरूषोत्तम राम की नगरी में उनके जन्मस्थान पर मंदिर के लिए संघर्ष रहा। इसका परिणाम 9 नवम्बर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद हुआ, जिसका अंतिम परिणाम श्रीरामलला विराजमान मंदिर का लोकार्पण 22 जनवरी 2024 को हो गया।

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इस घटनाओं को सामान्य व्यक्ति होने के कारण व सूचना विभाग के अधिकारी होने के कारण मुझे नजदीक से देखने का मौका मिला, जिसमें अयोध्या के निर्माण में करोड़ों लोगों का योगदान है, लेकिन 108 उन महानुभावों का विशेष योगदान है जो अपने जीवन के समर्पित कर राम आंदोलन को आगे बढ़ाया।

डॉ. मुरलीधर सिंह शास्त्री ने बताया कि हमारी इस पुस्तक में उन महानुभावों का विशेष योगदान रहा। यह पुस्तक 432 पेज की है जिसमें 12 कलर पृष्ठ में फोटो भी संलग्न है। इस पुस्तक में मुख्य रूप से अयोध्या के विषय में व्यापक रूप से आरेछा धाम में राम के स्थान का व्यापक रूप से काशी धाम में महादेव के स्थान का व्यापक रूप से तथा राम के 11 वर्ष के वनवास में चित्रकूट धाम में निवास का और भगवान राम के अवतार कृष्ण के धाम मथुरा के विशेष पहलुओं का उल्लेख किया गया।

इस पुस्तक में परम्परागत रूप से हटकर मार्डन पूजा पद्वति एवं साधना पद्वति का भी उल्लेख किया गया, जिसमें कि कोई भी व्यक्ति पैन्ट सर्ट पहनकर पूजा कर सकता है तथा कैनवास का जूता पहनकर माला भी जब सकता है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति 24 घंटे में 21600 सांस लेता है और सभी सांस में हंस स्वरूप परमात्मा का ध्यान करता है। जैसे आप कोई सांस लेता है तो ‘स‘ और कोई व्यक्ति सांस छोड़ता है तो ‘ह‘ का आवाज निकलता है ये दोनों तांत्रिक/वैदिक दृष्टि बीज मंत्र है। ये दोनों को मिलाकर हंस बनता है जो परमात्मा का स्वरूप है तथा मां गायत्री जी को समर्पित है। हंसा स्वरूपे परमात्मे समर्पयेत् यह ऋग्वेद का मंत्र है।

यह पुस्तक मूल रूप से स्वान्तः सुखाय है। हनुमान जी अयोध्या के अधिपति हनुमान जी एवं गुरुओं को समर्पित है तथा भगवान राम की प्रेरणा से लिखी गयी है इसका सहयोग राशि 641 रुपये है। 641 को अंक दृष्टि से जोड़ेंगे तो कुल 11 होगा, जो परमात्मा को समर्पित है। यह पुस्तक चैत्र पूर्णिमा 23 अप्रैल से सभी बुक स्टालों पर तथा इसके वितरक श्री अयोध्या जी सेवा न्यास के पास उपलब्ध रहेगी। आज इस पुस्तक के विमोचन के अवसर पर श्रीरामलला स्वयं साक्षी है।

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डॉ. शास्त्री ने बताया आचार संहित के कारण हमारे राजनेता अधिकारियों ने केवल आर्शीवाद दिया। विशेष आर्शाीवाद सनातन जनमानस के पुरोधा तथा विश्व हिन्दू परिषद के वरिष्ठ प्रेरक दिनेश ,राजेन्द्र सिंह पंकज , चम्पत राय , एलएनटी के चीफ विनोद मेहता का आर्शीवाद रहा जो हमें इसको आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया।

इस पुस्तक में महामहिम, विधानसभा अध्यक्ष, डा. कर्ण सिंह , न्यायमूर्ति गणों के उपमुख्यमंत्री गणों के, मंत्री गणों एवं लेखक के पूर्व सम्पर्क में रहे देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ,चन्द्रशेखर , पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, मुलायम सिंह , पूर्व राज्यपाल मोतीलाल बोरा , भाजपा के जानें मानें विचारकगोविन्दाचार्य के आज के विचारों एवं व्यक्तिगत पत्रों का उल्लेख किया गया है। इस पुस्तक में पांच खण्ड बनाये गये है।

पहला धार्मिक स्थानों के अलावा जनोपयोगी केन्द्रीय मंत्रिमण्डल, राज्य मंत्रिमण्डल, उत्तर प्रदेश सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों एवं मण्डल एवं जनपद स्तर के जिला प्रशासन से जुड़े फोन नम्बर आदि दिये गये है। जो आशा करते है कि आम जनमानस को एवं जिज्ञासु जनमानस को जनोपयोगी होगी। पुस्तक की पूरी पीडीएफ भी संलग्न है।

लेखक : उपनिदेशक सूचना अयोध्या धाम/प्रभारी मीडिया सेंटर लोक भवन लखनऊ, डॉ. मुरलीधर सिंह शास्त्री

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